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28 अक्तूबर 2013

वोह मेरा सनम अजब मगर निराला है ..

वोह मेरा सनम
अजब मगर निराला है ..
सोचता हूँ
खूबसूरत रंग भरूं
में उसकी ज़िंदगी में
मुझे उसके लायक़
कोई रंग नहीं मिलता
सोचता हूँ
कुछ अच्छा लिखू उसके लिए
मुझे ऐसा कोई क़लम नहीं मिलता
सोचता हूँ
कुछ कहूं उसके लिए
ऐसा मुझे कोई
अलफ़ाज़ नहीं मिलता
सोचता हूँ
उसकी तरह ऊंचा उडुँ
मुझे ऐसा
कोई परवाज़ नहीं मिलता
वोह मेरा सनम है
सबसे अलग
मुझ से दूर कोसों दूर
वोह मेरा सनम है
अजब सनम है
लेकिन
गज़ब सनम है
वोह दिखता है
वोह महसूस होता है
बस
मिलता नहीं
मिलता नहीं
वोह मेरा सनम है
अजब है गज़ब है
वोह मेरा सनम है
वोह मेरा सनम है ....
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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