आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

10 सितंबर 2013

अब्दुल हमीद के बलिदान दिवस (१० सितम्बर )पर एक श्रद्धांजली


वीर अब्दुल हमीद का जन्म 1-जुलाई-१९३३ को, गाजीपुर (उ.प्र.) में एक साधारण दर्जी परिवार में हुआ था. वे २७ दिसम्बर १९५४ में सेना में प्रविष्ट हुये थे और अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मान प्राप्त किया था. १९६५ में पाकिस्तान युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए महावीर चक्र और परमवीर चक्र प्राप्त हुआ .
८- सितम्बर-१९६५ की रात में, पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला करने पर, उस हमले का जवाव देने के लिए भारतीय सेना के जवान उनका मुकाबला करने को खड़े हो गए. वीर अब्दुल हमीद पंजाब के "तारन तारण" जिले के खेमकारन सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात थे. पाकिस्तान ने उस समय के अपराजेय माने जाने वाले "अमेरिकन पैटर्न टैंकों" के के साथ, "खेम करन" सेक्टर के "असल उताड़" गाँव पर हमला कर दिया.
भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे और नहीं बड़े हथियार लेकिन उनके पास था भारत माता की रक्षा के लिए लड़ते हुए मर जाने का हौसला. भारतीय सैनिक अपनी साधारण "थ्री नॉट थ्री रायफल", और एल.एम्.जी. के साथ पैटर्न टैंकों का सामना करने लगे. हवलदार वीर अब्दुल हमीद के पास "गन माउनटेड जीप" थी जो पैटर्न टैंकों के सामने मात्र एक खिलौने के सामान थी.
वीर अब्दुल हमीद ने अपनी जीप में बैठ कर अपनी गन से पैटर्न टैंकों के कमजोर अंगों पर एकदम सटीक निशाना लगाकर एक -एक कर धवस्त करना प्रारम्भ कर दिया. उनको ऐसा करते देख अन्य सैनकों का भी हौसला बढ़ गया और देखते ही देखते पाकिस्तान फ़ौज में भगदड़ मच गई. वीर अब्दुल हमीद ने अपनी "गन माउनटेड जीप" से सात "पाकिस्तानी पैटर्न टैंकों" को नष्ट किया था.
देखते ही देखते भारत का "असल उताड़" गाँव "पाकिस्तानी पैटर्न टैंकों" की कब्रगाह बन गया. लेकिन भागते हुए पाकिस्तानियों का पीछा करते "वीर अब्दुल हमीद" की जीप पर एक गोला गिर जाने से वे बुरी तरह से घायल हो गए और अगले दिन ९-जुलाई को उनका स्वर्गवास हो गया लेकिन उनके स्वर्ग सिधारने की आफिस्यली घोषणा १०-जुलाई को की गई थी.
इस युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें पहले महावीर चक्र और फिर सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया. सारा देश उनकी बहादुरी को प्रणाम करता है.
इस युद्ध में साधारण "गन माउनटेड जीप" के हाथों हुई "पैटर्न टैंकों" की बर्बादी को देखते हुए अमेरिका में पैटर्न टैंकों के डिजाइन को लेकर पुन: समीक्षा करनी पड़ी थी. लेकिन वो अमरीकी "पैटर्न टैंकों" के सामने केवल साधारण "गन माउनटेड जीप" जीप को ही देख कर समीक्षा कर रहे थे, उसको चलाने वाले "वीर अब्दुल हमीद" के हौसले को नहीं देख पा रहे थे.

देश पर मर मिटने वालों की जाति ,धर्म एक ही होता है राष्ट्रप्रेम .यूँ तो हमारे देश के इतिहास में देश के लिए शहीद होने वाले रणबांकुरों की सूची इतनी लंबी है कि उल्लेख करना एक प्रकार से असंभव ही  है,परन्तु गाजीपुर जिले के   एक छोटे से गाँव धामपुर के एक दर्जी परिवार में  1933  में जन्मे अब्दुल हमीद  उन युवाओं के लिए  प्रेरणा स्त्रोत्र हैं ,जिनके हृदय में देश प्रेम के अंकुर विद्यमान रहते हों.
आजीविका के लिए कपड़ों की सिलाई का काम करने वाले मोहम्मद उस्मान के पुत्र  अब्दुल हमीद की रूचि  अपने इस पारिवारिक  कार्य में बिलकुल नहीं थी.कुश्ती के दाँव पेंचों में रूचि रखने वाले पिता का प्रभाव अब्दुल हमीद पर भी था.लाठी चलाना ,कुश्ती का अभ्यास  करना,,पानी से उफनती नदी को पार करना,गुलेल से  निशाना लगाना एक ग्रामीण बालक  के रूप में इन सभी  क्षेत्रों में हमीद  पारंगत थे.उनका एक बड़ा गुण था  सबकी यथासंभव सहायता करने को तत्पर रहना . .
किसी अन्याय को सहन करना उनको नहीं भाता था.यही कारण है कि एक बार जब किसी गरीब किसान की फसल बलपूर्वक काटकर लेजाने के लिए जमींदार के 50 के लगभग गुंडे उस किसान के खेत पर पहुंचे तो हमीद ने उनको ललकारा , परिणाम   उनको बिना अपना मन्तव्य पूरा किये लौटना पडा.इसी प्रकार बाढ़ प्रभावित गाँव की नदी में डूबती दो  युवतियों के प्राण बचाकर   अपने  अदम्य साहस का परिचय दिया.
Abdul-Hamid-PVC
21 वर्ष के अब्दुल हमीद   जीवन यापन के लिए रेलवे में भर्ती होने के लिए गये परन्तु उनके संस्कार उन्हें प्रेरित कर रहे थे ,सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिए अतः उन्होंने एक सैनिक के रूप में 1954 में अपना कार्य प्रारम्भ किया.जम्मू काश्मीर में तैनात अब्दुल हमीद पकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों की खबर तो लेते  हुए मजा चखाते रहते थे , ऐसे ही एक आतंकवादी डाकू इनायत अली को जब उन्होंने पकड़वाया  तो प्रोत्साहन स्वरूप उनको प्रोन्नति देकर सेना में लांसनायक बना दिया गया.
1962 में जब चीन ऩे भारत की पीठ में छुरा भोंका तो अब्दुल हमीद उस समय नेफा में तैनात थे ,उनको अपने अरमान पूरे करने का विशेष अवसर नहीं मिला .उनका अरमान था कोई विशेष पराक्रम दिखाते हुए शत्रु को मार गिराने का
.अधिक समय नहीं  बीता औ 1965 में पाकिस्तान ऩे भारत पर आक्रमण  कर दिया .अब्दुल हमीद को पुनः सुअवसर प्राप्त हुआ अपनी जन्मभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने का.मोर्चे पर जाने से पूर्व ,उनके अपने भाई को कहे  शब्द            ‘पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है  जिन के पास कोई चक्र होता है.देखना झुन्नन हम जंग में लडकर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर ही लौटेंगे।”उनके स्वप्नों को अभिव्यक्त करते हैं.
उनकी भविष्यवाणी पूर्ण हुई और 10 सितम्बर 1965 को जब पाकिस्तान की सेना अपने कुत्सित इरादों के साथ अमृतसर को घेर कर उसको अपने नियंत्रण में लेने को तैयार थी,अब्दुल हमीद ऩे  पाक सेना को अपने अभेद्य पैटन टैंकों  के साथ आगे बढ़ते देखा .अपने प्राणों की चिंता न करते हुए अब्दुल हमीद ऩे अपनी तोप युक्त जीप को टीले के समीप खड़ा किया और गोले बरसाते  हुए शत्रु के तीन टैंक ध्वस्त कर डाले.पाक अधिकारी क्रोध और आश्चर्य में  थे , उनके मिशन में बाधक   अब्दुल हमीद पर उनकी नज़र पडी  को  और उनको  घेर कर गोलों की वर्षा प्रारम्भ कर दी.इससे पूर्व  कि वो उनका एक और टैंक समाप्त कर पाते ,दुश्मन की गोलाबारी से वो शहीद हो गये.अब्दुल हमीद का शौर्य और बलिदान  ने सेना के शेष जवानों में जोश का संचार किया और दुश्मन को खदेड दिया गया.
32 वर्ष की आयु में ही अपने प्राणों को देश पर न्यौछावर करने वाले इस वीर को उसकी शहादत पर नमन.
उन्होंने
अपनी अद्भुत वीरता से पाकिस्तानी शत्रुओं के खतरनाक,कुत्सित इरादों को तो ध्वस्त करते हुए  अपना  नाम इतिहास में सदा के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित कराया साथ ही एक सन्देश भी दिया कि .केवल साधनों के बलबूते युद्ध नहीं जीता जाता ,उसके लिए देशप्रेम +साहस और मर मिटने की भावना आवश्यक है ..
अपने भाई से किया वायदा उन्होंने पूर्ण किया और मरणोपरांत उनको सबसे बड़े सैनिक सम्मान परमवीरचक्र  से सम्मानित किया गया, जो उनकी पत्नी श्रीमती रसूली बीबी ने प्राप्त किया.इसके अतिरिक्त भी उनको समर सेवा पदक,सैन्य सेवा पदक और रक्षा पदक प्रदान किये गए.
उनकी समाधि जो  उनके बलिदान की स्मृति में बनी है एक प्रेरणा स्त्रोत्र है,परन्तु एक दिन समाचार पत्र में पढ़ा था कि उनकी पत्नी और परिवार की स्थिति दयनीय है और वर्तमान में जो सहायता उनको मिलनी चाहिए उसके लिए चक्कर काटते थक चुके हैं वो लोग.इसमें कुछ आश्चर्यजनक नहीं क्योंकि उस समय तो नियमों व जनता के दवाब के कारण घोषणाएँ कर दी  जाती हैं परन्तु बाद में उनको ऐसे परेशान किया जाता है,मानों वो भिक्षा मांग रहे हों.भगत सिंह हों,या आतंकवादियों का सामना करते हुए अन्य शहीद सबके परिवारों को अनेकानेक कष्ट सहने पड़ते हैं.
आज हमारे देश में राष्ट्र के प्रति प्रेम और चिंता अपवाद स्वरूप दिखती है ऐसे  ऐसे में ये उपेक्षापूर्ण व्यवहार कैसे जोश भरते हुए प्रेरित कर  सकता है,सैन्य सेवाओं में युवाओं को प्रवेश के लिए.  क्या विडंबना है कि एक ओर तो हम अपना धन कसाब और अजमल जैसे कुख्यात ,मानवता के शत्रुओं पर लुटा रहे हैं और दूसरी ओर देश के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वालों के परिवार की देख रेख करने या उनके परिवार की स्थाई आजीविका की व्यवस्था करने का समय या आवश्यकता नहीं समझते. अब्दुल हमीद तथा अन्य सभी शहीदों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजली यही है कि उन शहीदों के परिवारों को आर्थिक रूप से दर दर की ठोकरें न कहानी पड़ें.इसके अतिरिक्त भी विविध कारपोरेट  समूह जिस प्रकार खिलाडियों के लिए धन प्रदान करते हैं इन शहीदों के परिवार के कम से कम एक सदस्य को रोज़गार की व्यवस्था कर सकते हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...