जान मेरी !
मैं अभी
खुद तलाश में हूँ
जवाब के ..
मिल जाये मुझे तो
भेजूंगी तुम्हें भी ,
कि
इश्क चीज़ क्या है ?
कि नदी क्यूँ उफनती है
समंदर से मिलने ,
कि शमा क्यूँ जलती गलती है
परवाने के अंग संग ,
कि धरती क्यूँ गमकती है
बारिश कि पहली बूंदों से ,
कि कोयल क्यूँ बौराती है
अमिया के फूलने पर
कि चाँद और चकोर का
क्या नाता है आपस में ,
कि चातक क्यूँ तरसता है
स्वाति की इक बूंद को,
कि बीज !
धरती की कोख में उतरकर
कैसे पाता है
नया आकार ,
कि क्यों तुम्हारा ज़िक्र -
जैसे
शंखों और अजानों की
गूंज ,
कि क्यों तुम्हारी याद की छुवन
जैसे
स्थिर ताल में
कंकर से बनी लहर ,
कि क्यों तुमसे मिलने की ललक
कच्चे घड़े से पार करती नदी ,
कि क्यों दुआओं में
तुम्हारे नाम करती
अपनी सारी खुशियाँ
और अपनी पूरी जिंद .
जान !
पहले मैं जान लूं
इन सबके मतलब
तब फिर तुम्हें भी
समझाऊं मानी
मुहब्बत के ............!
जान मेरी !
मैं अभी
खुद तलाश में हूँ
जवाब के ..
मिल जाये मुझे तो
भेजूंगी तुम्हें भी ,
कि
इश्क चीज़ क्या है ?
कि नदी क्यूँ उफनती है
समंदर से मिलने ,
कि शमा क्यूँ जलती गलती है
परवाने के अंग संग ,
कि धरती क्यूँ गमकती है
बारिश कि पहली बूंदों से ,
कि कोयल क्यूँ बौराती है
अमिया के फूलने पर
कि चाँद और चकोर का
क्या नाता है आपस में ,
कि चातक क्यूँ तरसता है
स्वाति की इक बूंद को,
कि बीज !
धरती की कोख में उतरकर
कैसे पाता है
नया आकार ,
कि क्यों तुम्हारा ज़िक्र -
जैसे
शंखों और अजानों की
गूंज ,
कि क्यों तुम्हारी याद की छुवन
जैसे
स्थिर ताल में
कंकर से बनी लहर ,
कि क्यों तुमसे मिलने की ललक
कच्चे घड़े से पार करती नदी ,
कि क्यों दुआओं में
तुम्हारे नाम करती
अपनी सारी खुशियाँ
और अपनी पूरी जिंद .
जान !
पहले मैं जान लूं
इन सबके मतलब
तब फिर तुम्हें भी
समझाऊं मानी
मुहब्बत के ............!
मैं अभी
खुद तलाश में हूँ
जवाब के ..
मिल जाये मुझे तो
भेजूंगी तुम्हें भी ,
कि
इश्क चीज़ क्या है ?
कि नदी क्यूँ उफनती है
समंदर से मिलने ,
कि शमा क्यूँ जलती गलती है
परवाने के अंग संग ,
कि धरती क्यूँ गमकती है
बारिश कि पहली बूंदों से ,
कि कोयल क्यूँ बौराती है
अमिया के फूलने पर
कि चाँद और चकोर का
क्या नाता है आपस में ,
कि चातक क्यूँ तरसता है
स्वाति की इक बूंद को,
कि बीज !
धरती की कोख में उतरकर
कैसे पाता है
नया आकार ,
कि क्यों तुम्हारा ज़िक्र -
जैसे
शंखों और अजानों की
गूंज ,
कि क्यों तुम्हारी याद की छुवन
जैसे
स्थिर ताल में
कंकर से बनी लहर ,
कि क्यों तुमसे मिलने की ललक
कच्चे घड़े से पार करती नदी ,
कि क्यों दुआओं में
तुम्हारे नाम करती
अपनी सारी खुशियाँ
और अपनी पूरी जिंद .
जान !
पहले मैं जान लूं
इन सबके मतलब
तब फिर तुम्हें भी
समझाऊं मानी
मुहब्बत के ............!
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