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01 जुलाई 2013

तो क्‍या लाखों में है मरने वालों की तादाद? रहस्‍य ही रहेगी केदारनाथ की त्रासदी

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उत्तराखंड के केदारनाथ में असल में क्या हुआ था इसका पता कभी किसी को नहीं लग सकेगा। केदारनाथ और उसके आस-पास के इलाके में 16 और 17 जून को कितनी बारिश हुई जो ऐसी भयंकर तबाही मची, इसका भारतीय मौसम विभाग के पास कोई आंकड़ा नहीं है। इसकी वजह यह है कि मौसम विभाग इस इलाके को कवर नहीं करता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के उपाध्यक्ष एम शशिधर रेड्डी का कहना है कि उन्हें यह नहीं पता है कि केदारनाथ के पास के इलाके में कितनी बारिश हुई और वहां कैसे इतनी तबाही मची? एनडीएमए के चेयरमैन पीएम मनमोहन सिंह हैं। रेड्डी का कहना है कि अब वैज्ञानिक केवल अनुमान लगा सकते हैं कि वहां पर क्या हुआ होगा? 
 
यही नहीं सरकार उत्तराखंड त्रासदी में मरने वालों की संख्या को भी काफी कम बता रही है। इस राज्य में पीक सीजन में कम से कम तीन लाख टूरिस्ट होते हैं। चार धामों की यात्रा के दौरान इसपहाड़ी राज्य का पीक सीजन माना जाता है। सरकार अब तक मरने वालों का आंकड़ा हजारों में बता रही है इसमें भी राज्य सरकार के नेता एकमत नहीं हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा तो यहां तक कह रहे हैं कि आपदा में मरने वालों की असल संख्या का पता चलना मुश्किल है।
 
यहां चार धाम स्थित हैं लेकिन यहां मौसम का पूर्वानुमान लगाने को कोई साधन नहीं हैं, केदारनाथ और बद्रीनाथ में हुई बारिश को मापने के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं। इन धामों के पीछे मौजूद ग्लेशियरों में होने वाली हलचल देखने के लिए भी कोई इंतजाम नहीं हैं। इन सालों में सरकार को यह भी नहीं पता था कि अगर बारिश आएगी तो इसका प्रभाव किन-किन इलाकों पर पड़ सकता है। 
 
रेड्डी का कहना है कि इसी वजह से बारिश के साथ आपदा आने पर राज्य सरकार हक्की-बक्की रह गई और उसे कुछ नहीं सूझा। 19 जून को तबाही मचने के बाद रेड्डी ने भारतीय मौसम विभाग और सेंट्रल वॉटर कमीशन के अधिकारियों की बैठक ली। ये दोनों संस्थाएं बारिश और बाढ़ का पूर्वानुमान लगाती हैं। लेकिन बैठक में अधिकारियों ने बताया कि केदारनाथ और बद्रनीथ के पास के इलाकों में हुई बारिश का उनके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। अधिकारियों से इसका कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है कि यहां कोई उपकरण ही नहीं लगाए गए हैं।

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