आपका-अख्तर खान

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08 जुलाई 2013

रमजान माह में रोजा इबादत है सजा नहीं इसे बार बार गिनकर मुसलमान को शर्मसार न करो यारों यह अनुशासित इस्लामिक जिंदगी जीने की कला ट्रेनिंग का महिना है इसे सजा मत बनाओ यारो

दोस्तों इबादत ..तिलावत .तरावीह और नेकी बाँटने का पाक महिना रमज़ानुल मुबारक इंशाअल्लाह नजदीक है सुबह तीन बजे सभी को एक आवाज़ सुनाई देगी जिसे सुनकर हर शख्स हेरान होगा उठेगा वुजू करेगा और इबादत इबादत पुकारेगा रोज़ा रखेगा बुराइयों से बचने का अहद करेगा और वोह आवाज़ होगी उठो मुसलमानों सहरी का वक्त हो गया है सभी को रमजानुल माह की मुबारकबाद ..सभी जानते है के रमजान इबादत की ट्रेनिंग का महीना है क्योंकि मुसलमान कुरान के बताये हुए रस्ते से रोज़ भटकता है आखिरत की जगह अपनी और अपने बीवी बच्चों की परवाह में रोज़ गुनाह और गुनाह करता है ....लेकिन रोजा एक ऐसी ट्रेनिंग है जो इंसान को नेकी के रास्ते पर चलना सिखाता है उसके फ़्राइश याद दिलाता है और जियो और जियों के सिद्धांत की पालना सिखाता है ...लेकिन दोस्तों कुछ है जो रमजान को खेल तमाशा समझते है कुछ है जो रमजान में ऐसे ऐसे जुमे इस्तेमाल करते है जिससे दुसरे लोगों को रमजान अज़ाब और केहर लगने लगता है ..दुसरे समाज के लोग जो रमजान के महीने को नेकी का महीन समझते है वोह इस महीने को मुसलमानों का काम से बचने का महिना समझ बैठते है ..कई लोग है जो रमजान रखने से ज्यादा रोज़े के बारे में कर रोज़ा है में रोज़े में झूंठ नहीं बोलता में रोज़े में बेईमानी नहीं करता में यह नहीं करता में वोह नहीं करता सब कहता है तो दोस्तों बताओ क्या एक मुसलमान को रोज़े के अलावा झूंठ बोलने .मक्कारी करने ..बेईमानी करने ...हरामखोरी करने हराम रोज़ी कमाने ..कत्ल करने ..फरेब करने ..अपने रोज़गार के काम से हरामखोरी करने का अधिकार है नहीं ना तो फिर रोज़े के दिनों में इस तरह का अलाप खुद को मुस्ल्मानियत से दूर करने जेसा ही तो है ..............लोग कहते है रमजान में इबादत करो नेकी करो तरावीह पढो कुरान की तिलावत करो लेकिन इसका मतलब यह नहीं के अपने जायज़ और हलाल के रोज़गार से दूर हो जाओ अपनी दिन चर्या को उठने सहरी करने और फिर सो जाने के बाद इधर उधर टाइम पास कर केवल और केवल इफ्तारी के दस्तरखान पर बेठ कर पांच दिन की मस्जिद की तरावीह ...दस दिन की मस्जिद की तरावीह ..बीस दिन की मस्जिद की तरावीह खोजने में वक्त बर्बाद कर दो ...रमजान के माह में रोज़े एक इबादत है एक जीने की कला एक इस्लाम के मानने वाले मुलसमान को मोमिन बनाने की ट्रेनिंग है और यह तट्रेनिंग मुसलमान याद रखे तो मुसलमान है वरना रोजा खत्म हुआ ईद मनाई गोश्त खाया और फिर कोई तो सत्ते के कारोबार में लग गया ..कोई जीना खोरी में लग गया ..कोई वक्फ की सम्पत्ति और कब्रिस्तानो के क्क्ब्जेदार बन गया और कोई कब्रिस्तानो को बेचने लग गया ..कोई रूपये लेकर कुरान की आयतों का मोल करने लग गया कोई पड़ोसी को परेशां कर रहा है तो कोई हक और बातिल की तमीज़ भुला कर झूंठ का साथ देकर झूंठ गवाही दे रहा है .तो कोई सियासत के नामा पर दिनी भाइयों की सोदेबाज़ी कर रहा है तो कोई मुसलमानों के कातिलों का पैरोकार बनकर सियासी तोर पर सोदेबाज़ी कर सरकार से सरकारी पद लेकर कातिलों का खुलेआम पैरोकार बन गया है ..देश के सभी मुफ़्ती सभी ओलेमा इस सच को जानते है इससे भी ज्यादा इस सच को उस मुसलमान ने समझा है जो रोज़ कुरान मजीद तर्जुमे के साथ पढ़ता है समझता है और इस्लाम के सच को जानकार इस्लाम के नाम पर जिंदिग जिन्वे वालों की जीवन शेली देखता है ..एक हिन्दू तो क्या मुसलमान भी ऐसे लोगों से नफरत करता है जो नफरत फेलाते है ..जो झूंठ बोलते है जो स्मेक ..जर्दा तम्बाकू शराब का सेवन करते है जीना खोरी करते है ओर्तों का हक मारते है वालिद वादों और छोटे बढ़े भाई बहनों से झगड़ते है उन्हें बेईज्ज़त करते है ..रोज़ी में हरामखोरी मक्कारी करते है ..अमन सुकून के खिलाफ हिंसा का साथ देते है वोह लोग मुसलमान से मोमीन नहीं हो सकते उन लोगों का तो मुसलमान बना रहना भी मुस्खिल है फतवे पर चल नहीं सकते और फतवे देते फिरते है तक्वा तो उहने पता ही नहीं के क्या होता है एक मुस्लिम का तक्वा अगर जानेंगे तो इस्लाम के प्रति लोगों का रूह्जान लोगों का प्यार अपनापन बढ़ जाएगा क्योंकि इस्लाम जीने का नाम है इस्लाम कुर्बानी का नाम है इस्लाम दूसरों की मदद करने का नाम है इस्लाम ज़ुल्म के खिलाफ अधर्म पर धर्म की लड़ाई का नाम है .इस्लाम ख़ुशी और खुशहाली का नाम है ..पड़ोसी से प्यार ही इस्लाम है बीमार की मदद ही इस्लाम है ..हलाल की रोज़ी खाना ही हराम है बुराई से बचना दूसरों को बुराई से बचाना और बुरे आदमी को सुधारने की कोशिश करना नहीं सुधरे तो फिर उसका बाइकोत करने का ही नाम इस्लाम है आज मस्जिदों में निर्माण के लियें रुपया किस कमाई का लग रहा है कमाई हलाल की है या नहीं सिर्फ बा असर आदमी कमाने वाला आदमी जिसकी कमाई कहा से केसे आ रही है उसे देखे बगेर मस्जिदों में उस रूपये को लगाकर ऐसे दो नम्बर के काम करने वालों को कोम का हीरो बनाने की कोशिश इस्लाम नहीं है ....रोज़े के दिनों में काम से बचना ..केवल रोज़े के दोरान ही सच बोलने का तकिया कलाम ..केवल रोज़े के नाम पर घर से बाहर निकलने से बचना रोज़े का नाम नहीं है बार बार नमाज़ ..बार बार रोज़े को गिनाना इबादत नहीं दिखावा है आप अपने आचरण को देखो अपने आचरण को सुधारो और किरदार ऐसा अनुशासित बना लो ऐसा ईमान वाला किरदार बनाकर दिखा दो के लोग कहे के वोह देखो अलाह का बन्दा मुसलमान जा रहा है वोह देखो खुदा का नेक इंसान जा रहा है और हर शख्स वेसा ही बन्ने की होड़ में इस्लाम की राह पकड़ कर आखिरत की तरफ दोड़ पढ़े ..तो दोसोत्न अहद लो के रमजान के नाम पर मेरे मुंह में रोज़ा है में यह नहीं करता में वोह नहीं करता में ऐसा हूँ में वेसा हूँ में नमाज़ पढने गया था में नमाज़ पढ़कर आ रहा हूँ लोगों को गिनाओ मत क्योंकि यह सब खुद और आपके बीच की बात है दुनिया में तो सिर्फ और सिर्फ आपके अखलाक आपका अनुशासन देश और देश के लोगों के लियें आपका दर्द आपकी मदद का जज्बा आपका अपनापन ही आपकी तरबियत है आप की हलाल रोज़ी की तरफ बढना हलाल रोज़ी की तरफ अनुशासित तरीके से बुलंदी पर पहुंचने की कोशिश करना और वक्त पर तय शुदा अनुशासन की तरह अपना काम अपना रोज़गार करना ही दुनिया के लियें इबादत है एक दुनिया खुदा और आपके बीच की है और एक दुनिया बन्दे और आपके बीच की है ..तो जनाब रमजान इनाम है रमजान सजा नहीं जिसे बार बार इस तरह से गिनाया जाए के सजा का वक्त कम हो रहा है और अब रिहाई होने वाली है .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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