23 फरवरी 1991 की रात, कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में हिमाच्छादित गांव
कुनन पोशपारा में लोग घरों के भीतर, कांगडिय़ों से खुद को गर्म रख रहे थे या
रजाइयों में दुबके थे। शांत रात का सन्नाटा अचानक दरवाजे पर दस्तक से
टूटता है। सेना आई थी एक और ‘कड़ी कार्रवाई’ के लिए उन आतंकियों को निकालने
जो उसे लगता था उनके गांव में छिपे हैं।
घाटी में उग्रवाद अपने चरम पर था और यह सुरक्षा बलों का रूटीन था कि
गांवों के इर्द-गिर्द रहें और लोगों को उनके घरों से निकालकर पूछताछ करें।
उस रात सुरक्षाबल दो घरों में गए, जो पूछताछ यातना केन्द्रों में तब्दील हो
गए। पुरुषों को औंधे मुंह लिटाया गया, उनके चेहरे मिर्ची भरे बर्तन में थे
और उन्हें बिजली के झटके दिए गए।
पुरुषों को पता नहीं था, फौजियों की टोली उनके हरेक घर में घुस चुकी
थी, जहां उन्होंने 8 से 80 साल तक की लड़कियों और महिलाओं से बारी-बारी
दुष्कर्म किया, यहां तक कि बच्चे उन्हें देखकर दहशत से चीखते रहे। अगली
सुबह पुरुषों को निर्देश मिले, जब तक सेना गांव से चली न जाए, वे अपने घर न
लौटें। जब वे घर पहुंचे तो पाया कि उनके घर लुट चुके थे, औरतें अपने घरों
में बेहोश पड़ी थीं, खून बह रहा था, सहमे से बच्चे उन्हें घेरे थे।
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