भोपाल। वक्त-बेवक्त बेतुके-से लगने वाले बयान देने से कभी न
थकने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह आखिर ऐसे क्यों हैं? और ऐसा करने
पर भी उन्हें कोई रोकता क्यों नहीं?
गालिब ने कहा था छूटती कहां है कमबख्त मुंह से लगी हुई, अंग्रेजी में
इसके लिए ओल्ड हैबिट्स डाइ हार्ड का जुमला है और दोनों का लब्बोलुआब यह है
कि पुरानी आदतें आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं। साठ के दशक में इंदौर के
प्रतिष्ठित डेली कॉलेज का एक छात्र जो राघोगढ़ राजपरिवार से ताल्लुक रखता
था, आज अपनी उसी आदत से जूझ रहा है।
कॉलेज में भी अनुशासनहीनता के मिले थे नोटिस
दिग्विजय सिंह अपने कॉलेज में लगातार छह साल तक सेंट्रल इंडिया के
जूनियर स्क्वैश चैंपियन भी थे। लेकिन उनके व्यक्तित्व का दूसरा पहलू यह है
कि कॉलेज के जमाने में जितनी बार उन्हें अनुशासनहीनता संबंधी नोटिस भेजे गए
उसका भी कोई मुकाबला नहीं है। उन्हें कई बार स्कूल से निकाल देने की भी
चेतावनी मिली थी।
ईमानदारी के चश्मे से देखें तो आज भी उनके बयान और काम-काज का तरीका
अनुशासनहीनता के दायरे में ही आता है लेकिन जैसा कि कांग्रेस के वरिष्ठ
नेता और सीडब्ल्यूसी के एक सदस्य कहते हैं, 'देखते हैं पार्टी कब तक उनके
इस रवैये को बर्दाश्त करती है।
क्यों नहीं लगाई जा रही है जुबान पर लगाम
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए अलग नियम
और बड़े नेताओं के लिए अलग नियम तो नहीं होने चाहिए। आजकल जितने भी
कार्यकर्ताओं से बात की जाए सबकी चिंता बस यही होती है कि दिग्विजय सिंह की
जुबान पर लगाम क्यों नहीं लगाई जा रही है। जानकार बताते हैं कि दिग्विजय
सिंह का कद पार्टी में काफी ऊपर है और उन्होंने अपने राजनीतिक सरपरस्तों को
विश्वास में लिया हुआ है इसलिए उन पर कार्रवाई करना शायद पार्टी के बस में
भी नहीं है।
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