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30 जून 2013

उत्‍तराखंड: 948 ग्‍लेशि‍यर, होने वाली है बरसात, अब आएगी असली तबाही!



देहरादून. उत्तराखंड में कुल 948 ग्लेशियर हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, जो बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री धामों के इर्द-गिर्द स्थित हैं। खुद ग्लेशियर विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगर केदारघाटी स्थित चोरबाड़ी झील (गांधी सरोवर) में अत्यधिक बरसात कहर बरपा सकती है तो चारों धाम में यह नौबत कभी भी आ सकती है। वह इसकी वजह बढ़ते वर्षा क्षेत्र को करार दे रहे हैं। उनकी मानें तो पहले जहां 3000-3500 मीटर तक वर्षा हो रही थी, अब 4500 मीटर तक हो रही है। बर्फ कम गिरने से यह स्थिति पैदा हुई है। ग्लेशियर इनवेंटरी तो बनाई गई है, लेकिन इनसे बनने वाली झीलों का आंकड़ा मौजूद नहीं, लिहाजा इनकी निगहबानी भी बेहद मुश्किल है। 
 
ये ग्लेशियर पैदा कर सकते हैं दिक्कत
 
वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के ग्लेशियर विशेषज्ञ डा. डीपी डोभाल के अनुसार ग्लेशियोलाजी सेंटर लगातार अध्ययन करता रहा है। बदरीनाथ में सतोपंथ, हरवा, केदारनाथ में चोरबाड़ी, गंगोत्री में गंगोत्री, जबकि यमुनोत्री में खतलिंग, बूढ़ा केदार जैसे बड़े ग्लेशियर हैं। अत्यधिक बारिश की स्थिति में झील फट सकती है। अत्यधिक पानी डाउनस्ट्रीम बहता है जो तबाही का कारण बनता है।
 
डा. डोभाल के मुताबि‍क नेपाल से सीखने की बेहद जरूरत है। ग्लेशियरों से बनने वाली झीलों का ब्योरा नहीं, लिहाजा निगहबानी मुश्किल है। झीलों के फटने से बचने को सुझाव होने चाहि‍ए। ग्लेशियर निर्मित झीलों की इनवेंटरी (ब्योरा) तैयार करें। खतरनाक झीलों तक मानवीय हस्तक्षेप बंद किया जाए। ग्लेशियरों के एक निश्चित दायरे में प्रवेश पर रोक हो। इनका वैज्ञानिक अध्ययन हो, इसके लिए कमेटी बने। सतत निगरानी की व्यवस्था और विशेषज्ञों की मदद लें। नेपाल न केवल ग्लेशियर, बल्कि इससे बनने वाली झीलों की इनवेंटरी (ब्योरा) तैयार कर चुका है। वहां एक हजार के आस-पास इस तरह की झीलें हैं। अलबत्ता, वहां खतरे की बात इसलिए ज्यादा है, क्योंकि ज्यादातर झीलें ग्लेशियर के आगे की तरफ बनी हैं। लेकिन अगर बारिश का ग्राफ बहुत ऊपर रहे तो ग्लेशियर से किसी भी तरह बनी झील से खतरा होगा।

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