जयपुर.मूक-बधिर बच्चों की पीड़ा जानना वाकई बहुत मुश्किल है। उनको
शिक्षा देने वाली संस्थाओं ने सारे नियम-कायदे ताक में रख दिए हैं। एक
स्कूल से पढ़कर निकलने वाला बच्चा दूसरे स्कूल के बच्चे की पूरी बात तक
नहीं समझ सकता क्योंकि री-हैबिलिटेशन कांउसिल आफ इंडिया (आरसीआई) की ओर से
मूक-बधिरों को पढ़ाने के लिए तय भाषा (लिप रीडिंग) को पूरी तरह से लागू ही
नहीं किया गया। हर स्कूल व संस्थान ने अपने स्तर पर साइन लैंग्वेज बना रखी
है।
‘आवाज’ फाउंडेशन संस्थान में मूक-बधिर बालिकाओं से दुष्कर्म की घटना
पर रविवार को भास्कर ने टॉक शो किया। ऐसे बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों व
बाल कल्याण समिति के पदाधिकारियों ने यह खुलासा किया। उनका सुझाव था कि
यहां या तो लिप रीडिंग पूरी तरह से लागू हो अन्यथा अमेरिकन या ब्रिटिश साइन
लैंग्वेज बनाई जाए ताकि ये बच्चे आसानी से अपनी बात व्यक्त कर सकें। टॉक
शो में शामिल डॉक्टर, वकील, शिक्षक, पुलिस अफसर, व्यापारी व निजी संस्थाओं
से जुड़े लोगों ने कहा कि इस घटना से हर वर्ग परेशान है। लोग पूरे सिस्टम
को जिम्मेदार मान रहे हैं। यह केस सीबीआई को सौंप देना चाहिए। आरोपियों को
कड़ी सजा देने के लिए केस फास्ट ट्रैक अदालत में भेजा जाना चाहिए।
न तो समय पर काउंसलिंग, न मॉनिटरिंग : मूक-बधिर, नेत्रहीन व निशक्त
बालक बालिकाओं को शिक्षा देने वाली ऐसी संस्थाओं की नियमित मॉनिटरिंग नहीं
हो रही है। मूक-बधिर बच्चों की काउंसलिंग तक समय पर नहीं होती। नियमों के
अनुसार तीन माह के भीतर काउंसलिंग होनी चाहिए जबकि इनसे जुड़ी संस्थाएं
नियम-कायदों का पालन नहीं कर रहीं। ऐसे आश्रित बच्चों को समझाने व पढ़ाने
के लिए बाल मन समझने वाले शिक्षक तक नहीं हैं और जो हैं, वे पूरी तरह से
सक्षम नहीं हैं।
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