आपका-अख्तर खान

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06 मई 2013

‘‘नहीं कहूँगा राधा, कुछ भी नहीं कहूँगा।

‘‘नहीं कहूँगा राधा, कुछ भी नहीं कहूँगा।
जताना ही पड़े यदि कहकर कुछ तो अपनापन क्या हुआ?’’
कान्हा ने मिजाज़ दिखाते हुए कहा और मुँह फेरकर बैठ गया बजाने बाँसुरी/
राधा मुस्कुरा दी सुनकर कृष्ण का उपालंभ
एक अजानी पीर में पिरोकर अपना संपूर्ण व्याकरण ज्ञान
यह भी नहीं कह सकी
‘‘बाँसुरी से पूछो तो सही कान्हा!, छिद्रों से बिंधे अस्तित्व के बावजूद
तुम्हारे होठों से लगते ही गुनगुनाने का यह हुनर
आखिर किस के मन से उधार लेकर आई है?’’

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