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18 मई 2013

लखनऊ की विभिन्न बार के चुनाव वकीलों के बहुत बड़े वर्ग को आपस में विभाजित कर देते हैं

लखनऊ की विभिन्न बार के चुनाव वकीलों के बहुत बड़े वर्ग को आपस में विभाजित कर देते हैं .. भीषण जातिवाद , इलाका वाद , शराब , पार्टी घर घर जाकर वोट की चिरौरी - सब होता है , लेकिन माननीय और विद्वान् होने की सच्ची कम्पटीशन गायब हो जाती है .. मेरा मानना है कि सिर्फ पुलिस और वकील समाज के प्रति गंभीर हो जाएँ तो सारा भ्रस्टाचार गायब हो जायेगा .. होता ये है - कोई बड़ा अपराध हुआ और पुलिस ने मुकदमा कमजोर किया फिर माननीय विद्वान ने भी अपराधी को फिर अपराध करने के लिए जमानत दिला दी .. 19 9 2 में जब मै वकील बना , तो बड़े अरमान लेकर कोर्ट गया .. जाकर देखा जज साहेब के सामने खुलेआम पेशकार रिश्वत ले रहा है , गरीब आदमी परेशां है .. अपराधी को बचाने का - बार बार बचाने का काम , सत्य को झूठ बनाने का काम .. अरे बाप रे - मुझसे ना हो सकेगा और तब साधारण सी दूकान किराए पर लेकर और काम करने लगा .. अब आज जब सुप्रीम कोर्ट - हाई कोर्ट प्रबल हो रहीं हैं , तो क्या सेशन व् लोअर कोर्ट को प्रबल करने का काम इन चुनावों में गंभीर मुद्दे उठा कर नहीं किया जाना चाहिए , लेकिन नहीं .. माननीयों के - विद्वानों के चुनाव में भी अगर दारु - जाति - व्यक्तिगत प्रलोभन से चुनाव जीता हारा जाता है तो देश के उन अशिक्षित गंवार वोटरों ( जो दारु पैसा लेकर किसी बलात्कारी को वोट देते हैं ) और इन पढ़े लिखे विद्वान् माननीयओ में कोई फर्क नहीं बचता . वो पूरे देश का भट्ठा बैठाते हैं , और ये कानून का .. मेरी आपसे विनती है कि माननीय और विद्वान् होना साबित करिए .. सच्चे वकीलों को आगे लाईये प्लीज .. शराब पीकर ही दिल्ली का बस रेप कांड हुआ .. शराब पीकर दिए गए वोट का मतलब सत्य का बलात्कार ..कम पैसे वाला सच्चा वकील भी आपका साथी ही है .. कोई बात बुरी लगी हो तो क्षमा चाहता हूँ .. सुप्रभात

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