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07 मई 2013

खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर हो रही खींचतान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण


खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर हो रही खींचतान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। ठीक है कि सरकार के भ्रष्टाचार का मुद्दा भी अहम है। उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी जानी चाहिए, मगर उस संघर्ष में इतने महत्वपूर्ण विधेयक को अटका दिया जाए, यह ठीक नहीं है। यह हाशिए के उस वर्ग के हित से जुड़ा है, जो हमेशा से उपेक्षित ही रहा है, लेकिन वह अपने लिए आवाज तक नहीं उठा पाता। आज समाज का प्रबुद्ध वर्ग भी मान रहा है कि राजनीतिक तबके को अपने सियासी मतभेद भुलाकर सबसे कमजोर लोगों के लिए नीतियां बनानी चाहिए।

नोबेल पुरस्कार विजेता विख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा है कि भूख की समस्या को सुलझाए बगैर सामाजिक-आर्थिक विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए इस विधेयक को जल्द से जल्द पास किया जाए नहीं तो भूख और कुपोषण से मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है। बीजेपी और कुछ अन्य दलों का आरोप है कि सरकार ने इसे अब तक टालने की कोशिश की और अब ऐसे समय में पेश किया है, जब वह कई तरह के आरोपों से घिरी हुई है। उसका मकसद आरोपों से लोगों का ध्यान हटाना है। फिर ऐन चुनाव के मौके पर इसे पेश करके वह इसका लोकसभा चुनाव में फायदा उठाना चाहती है।

यह बात सही हो सकती है। यह भी मुमकिन है कि विलंब के लिए सरकार कुछ तकनीकी कारण गिना दे। पर इस बहस का कोई अंत नहीं है। मूल बात यह है कि कुछ बुनियादी सवालों को राजनीतिक रस्साकशी से दूर रखने में ही देश का भला है। जिस तरह विपक्ष ने तमाम मतभेदों के बावजूद बजट पास कराया, उसी तरह खाद्य सुरक्षा बिल को भी पास कराया जाना चाहिए। इस मामले में विपक्षी दलों को विकसित देशों से सीखना चाहिए, जहां देश के डिवेलपमेंट और सुरक्षा के नाम पर अपोजीशन आम तौर पर सरकार से नहीं टकराता।

खाद्य सुरक्षा को लेकर कुछ विपक्षी पार्टियों की अपनी आपत्तियां या सुझाव हो सकते हैं। पर ये तभी सामने आएंगे जब बिल पर चर्चा हो। इस पर बहस कराकर इसे पास कराना विपक्ष की भी जवाबदेही है। उसे समझना चाहिए कि किसी मंत्री के रहने या इस्तीफा देने से भूख की समस्या का कोई संबंध नहीं है। क्या नागरिकों के एक बड़े हिस्से का भूखे रहना अपोजीशन के लिए शर्म का विषय नहीं है? चाहे वह अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) का ग्लोबल हंगर इंडेक्स हो या अन्य कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की रिपोर्टें, सबने बार-बार चेतावनी दी है कि भारत में भूख की समस्या खतरनाकस्थिति में पहुंच गई है।

एक अनुमान है कि देश में बीस करोड़ लोग ऐसे हैं, जो सुबह में इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं रहते कि उन्हें दिन में खाना नसीब होगा कि नहीं। ऐसे बदतर हालात में अगर निर्धनों को भोजन पाने का अधिकार दिया जा रहा है तो इस व्यवस्था को रोकने का कोई अर्थ नहीं है। उम्मीद है कि खाद्य सुरक्षा बिल का विरोध कर रही पार्टियां अपने रुख पर फिर से विचार करेंगी।

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