ज़रा ठहरो अभी इक साँस पुरानी बची है
तिरे आने कि इक उम्मीद भुलानी बची है ...
गली के छोर पे बचपन ठिठरा सा खड़ा है
दिखाई दे रहा बाक़ी कहानी बची है ...
हमें तिरी हर चाल मगर कौन बोले
शक्ल पर और कितनी शक्ल लगानी बची है ...
उम्र बढ़ती रही पर तिफ्ल-मिज़ाजी वही है
लहू कि गर्मजोशी और जवानी बची है ...
फलक पर चाँदनी अब देख नहीं पाता अकेले
‘भरत’ ये उम्र कितनी और बितानी बची है ...
ज़रा ठहरो अभी इक साँस पुरानी बची है
तिरे आने कि इक उम्मीद भुलानी बची है ...
गली के छोर पे बचपन ठिठरा सा खड़ा है
दिखाई दे रहा बाक़ी कहानी बची है ...
हमें तिरी हर चाल मगर कौन बोले
शक्ल पर और कितनी शक्ल लगानी बची है ...
उम्र बढ़ती रही पर तिफ्ल-मिज़ाजी वही है
लहू कि गर्मजोशी और जवानी बची है ...
फलक पर चाँदनी अब देख नहीं पाता अकेले
‘भरत’ ये उम्र कितनी और बितानी बची है ...
तिरे आने कि इक उम्मीद भुलानी बची है ...
गली के छोर पे बचपन ठिठरा सा खड़ा है
दिखाई दे रहा बाक़ी कहानी बची है ...
हमें तिरी हर चाल मगर कौन बोले
शक्ल पर और कितनी शक्ल लगानी बची है ...
उम्र बढ़ती रही पर तिफ्ल-मिज़ाजी वही है
लहू कि गर्मजोशी और जवानी बची है ...
फलक पर चाँदनी अब देख नहीं पाता अकेले
‘भरत’ ये उम्र कितनी और बितानी बची है ...
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