आपका-अख्तर खान

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18 मई 2013

ये शहर ...


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क्या हुआ सुनने को खरी-खोटी देता है
ये शहर ही है,जो पेट को रोटी देता है !

जाकर मिल में तुम लाख बुनो कपड़े
ढकने को जिस्म, सिर्फ लंगोटी देता है !

मेहनतकश को यहाँ नहीं कुछ हासिल
गर बेचो ईमान,तो रक़म मोटी देता है !

चौकाचौंध देख, ज्यादा हसरतें न पाल
पसारने को पाँव, चादर छोटी देता है !

यहाँ गरीबों को रोटी,मयस्सर हो न हो
अमीरों के कुत्तों को,चांप-बोटी देता है !

आसां नहीं पुर-सकूं जीना यहाँ "Roz"
ज़िंदा रहने को,रोज़ नई कसौटी देता है !
~S-roz~

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