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15 मई 2013

"ख्वाब जब ठहरे हुए हों तेरी आँखों में

"ख्वाब जब ठहरे हुए हों तेरी आँखों में
और तुझको नींद से कोई जगा दे
सोच लेना शीर्षकों के बाद जिन्दगी का शेष पन्ना
चीख कर चुप हो गया है
पढ़ चुका हूँ ध्यान देकर उस इबारत को
जो नहीं लिख पाए तुम सपनो की स्याही से
आत्मा की चीख भाषा में समाती नहीं है
शब्दों की जरूरत शेष है क्या ?-- तुम बताना
आज सपना देखना मत, गुनगुनाना
नीद अब तुमको यूँही आती नहीं है
लौटता हूँ युद्ध से मैं रक्तरंजित
पूछता हूँ तेरे तकिये से -- नमी का राज क्या है ? "--- राजीव चतुर्वेदी

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