इलाहाबाद
में अली सरदार जाफ़री से पहला परिचय, तब से अब तक उम्र काफी पुरानी हो चली
है, मगर ये नज्म रोज ही ताजी होती जा रही है, उम्र को बांधती हुई, उम्र को
मुक्त करती हुई और उम्र के पार जाती हुई........
"तुम नहीं आये थे जब, तब भी तो मौजूद थे तुम
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
दर्द की लौ की तरह, प्यार की ख़ुशबू की तरह
बेवफ़ा वादों की दिलदारी का अन्दाज़ लिये
तुम नहीं आये थे जब, तब भी तो तुम आये थे
रात के सीने में महताब के ख़ंजर की तरह
सुबह के हाथ में ख़ुर्शीद के साग़र की तरह
तुम नहीं आओगे जब, तब भी तो तुम आओगे......
इलाहाबाद
में अली सरदार जाफ़री से पहला परिचय, तब से अब तक उम्र काफी पुरानी हो चली
है, मगर ये नज्म रोज ही ताजी होती जा रही है, उम्र को बांधती हुई, उम्र को
मुक्त करती हुई और उम्र के पार जाती हुई........
"तुम नहीं आये थे जब, तब भी तो मौजूद थे तुम
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
दर्द की लौ की तरह, प्यार की ख़ुशबू की तरह
बेवफ़ा वादों की दिलदारी का अन्दाज़ लिये
तुम नहीं आये थे जब, तब भी तो तुम आये थे
रात के सीने में महताब के ख़ंजर की तरह
सुबह के हाथ में ख़ुर्शीद के साग़र की तरह
तुम नहीं आओगे जब, तब भी तो तुम आओगे......
"तुम नहीं आये थे जब, तब भी तो मौजूद थे तुम
आँख में नूर की और दिल में लहू की सूरत
दर्द की लौ की तरह, प्यार की ख़ुशबू की तरह
बेवफ़ा वादों की दिलदारी का अन्दाज़ लिये
तुम नहीं आये थे जब, तब भी तो तुम आये थे
रात के सीने में महताब के ख़ंजर की तरह
सुबह के हाथ में ख़ुर्शीद के साग़र की तरह
तुम नहीं आओगे जब, तब भी तो तुम आओगे......
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