आपका-अख्तर खान

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25 मई 2013

सभी प्रदेशों में कम से कम न्याय के मामले में तो यह निति बनना ही चाहिए के जिस राज्य का जज हो उस राज्य में उसकी नियुक्ति नहीं की जाए .

दोस्तों भारतीय न्याय सिद्धांत में अजीब दासता है एक व्यक्ति अगर मजिस्ट्रेट बनता है तो उसे उसके गृह जिले में नियुक्ति इसलियें नहीं देते के उस जिले में नियुक्त मजिस्ट्रेट की कर्म भूमि होने से मिलने जुलने वाले और रिश्तेदार रहते है ..लेकिन हाईकोर्ट खासकर राजस्थान हाईकोर्ट में जब कोई वकील जज नियुक्त होता है तो जिस अदालत में वोह पेरवी करता है उसी अदालत में उसे जज बनाकर बिठा दिया जाता है क्या यह अंकल जज और अंकल जजों का सिंड्रोम नहीं क्या यह वाजिब बात है के जो वकील जिस अदालत में जिस शहर में वकालत कर रहा है उसी शहर में वोह हाईकोर्ट का जज बन कर बढ़े फेसले करता है क्या यह न्याय के सिद्धांत के विपरीत नहीं है .....कहने को तो अंकल जज और अंकल सिंड्रोम को ठीक करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट निति बना रही है ......राजस्थान के एक मुख्य न्यायधीश ने तो अंकल जजों के भतीजों पर पुत्रों के वकालत नामे जहां जिस अदालत में लगते थे उसकी पूरी फहरिस्त ..मुकदमों की गुणवत्ता और निर्णयों के बारे में रिपोर्ट भी तय्यार की थी लेकिन उनके ट्रांसफर के बाद सब रिपोर्टें धरी रह गयीं .हमारा राजस्थान भी इस आग में तप रहा है झुलस रहा है सभी प्रदेशों में कम से कम न्याय के मामले में तो यह निति बनना ही चाहिए के जिस राज्य का जज हो उस राज्य में उसकी नियुक्ति नहीं की जाए ..........

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