कुछ भी अंतर नहीं
मुझमें व घास में
पांवों तले दबती है
कुम्हलाती है
जिंदगी की मुराद पाती है
दो बूंद बारिश सा स्नेह पाकर
हरियाती है
खिलखिलाती है
तन के, सर उठाती है
इसे समतल बनाने को
फिर चला देते हो तुम
कांटों भरी मशीन
कट जाती है घास
मुरझा जाती है आस
चूमकर फिर पांवों को
लिपट-लिपट सी जाती है
अपने वजूद का
अहसास दिलाती है
कुछ भी अंतर नहीं
मुझमें व घास में
पांवों तले दबती है
कुम्हलाती है
जिंदगी की मुराद पाती है......
..........रश्मि शर्मा
मुझमें व घास में
पांवों तले दबती है
कुम्हलाती है
जिंदगी की मुराद पाती है
दो बूंद बारिश सा स्नेह पाकर
हरियाती है
खिलखिलाती है
तन के, सर उठाती है
इसे समतल बनाने को
फिर चला देते हो तुम
कांटों भरी मशीन
कट जाती है घास
मुरझा जाती है आस
चूमकर फिर पांवों को
लिपट-लिपट सी जाती है
अपने वजूद का
अहसास दिलाती है
कुछ भी अंतर नहीं
मुझमें व घास में
पांवों तले दबती है
कुम्हलाती है
जिंदगी की मुराद पाती है......
..........रश्मि शर्मा
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