गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है !
ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !
मेरी निगाहों ने जब चूमा तेरी पलकों को ,
खार से आंसुओं का उनमें स्वाद आया है !
दरमियान हमारे दूरी बेहिसाब, इस खातिर,
सुरमई सी सांझ का बादल पयाम लाया है !
कोरे काग़ज पर है फक़त दो महकती बूंदे,
ये उन्हीं का है ख़त, जो मेरे नाम आया है !
ग़ज़ल के बहाने तुम्हें हाले दिल सुनाना है,
मेरे हिस्से के प्यार का ये उन्वान आया है
अलसाई आंखों के दरीचों से देखा है “रश्मि” ,
आज दरिया-ऐ–सब्र में कैसे उफान आया है !
..........रश्मि शर्मा
ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !
मेरी निगाहों ने जब चूमा तेरी पलकों को ,
खार से आंसुओं का उनमें स्वाद आया है !
दरमियान हमारे दूरी बेहिसाब, इस खातिर,
सुरमई सी सांझ का बादल पयाम लाया है !
कोरे काग़ज पर है फक़त दो महकती बूंदे,
ये उन्हीं का है ख़त, जो मेरे नाम आया है !
ग़ज़ल के बहाने तुम्हें हाले दिल सुनाना है,
मेरे हिस्से के प्यार का ये उन्वान आया है
अलसाई आंखों के दरीचों से देखा है “रश्मि” ,
आज दरिया-ऐ–सब्र में कैसे उफान आया है !
..........रश्मि शर्मा
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