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07 मई 2013

गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है !

गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है !
ना पूरा जल पाया कभी , न बुझ पाया है !

मेरी निगाहों ने जब चूमा तेरी पलकों को ,
खार से आंसुओं का उनमें स्वाद आया है !

दरमियान हमारे दूरी बेहि‍साब, इस खाति‍र,
सुरमई सी सांझ का बादल पयाम लाया है !

कोरे काग़ज पर है फक़त दो महकती बूंदे,
ये उन्हीं का है ख़त, जो मेरे नाम आया है !

ग़ज़ल के बहाने तुम्हें हाले दिल सुनाना है,
मेरे हिस्से के प्यार का ये उन्वान आया है

अलसाई आंखों के दरीचों से देखा है “रश्मि” ,
आज दरि‍या-ऐ–सब्र में कैसे उफान आया है !

..........रश्‍मि शर्मा

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