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25 मई 2013

जब इमाम जाफर सादिक (अ-स-) ने एक हिन्दुस्तानी चिकित्सक को शिक्षा दी।


इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम के ज़माने में इस्लाम की खुशबू पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। और यह खुशबू थी इस्लाम के ज्ञान और सच्चाई की। ज्ञान की तलाश में भटकते दूर दराज़ के लोग इस्लामी विद्वानों से आकर मिलते थे और फायदा हासिल करके वापस जाते थे। इस बार मैं आपको ऐसा ही किस्सा सुनाने जा रहा हूं जब एक हिन्दुस्तानी चिकित्सक इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से आकर मिला। वह इमाम को अपना ज्ञान देना चाहता था, लेकिन हुआ इसका उल्टा और वह खुद इमाम से ज्ञान हासिल करके वापस हुआ।

यह वाक़िया दर्ज है शेख सुद्दूक (अ.र.) की लिखी ग्यारह सौ साल पुरानी किताब एलालुश-शराये में। यह किताब उर्दू में आसानी से उपलब्ध् है और कोई भी इसे हासिल करके तस्दीक कर सकता है। क्योंकि हो सकता है कुछ लोग मेरे ऊपर ये इल्जाम लगा दें कि मैं ये किस्से अपनी तरफ से गढ़ रहा हूं।  किताब में लिखा पूरा वाकिया मैं हूबहू उतार रहा हूं।        

एक दिन हज़रत इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम दरबार में तशरीफ लाये। उस वक्त खलीफा मंसूर के पास एक मर्द हिन्दी (हिन्दुस्तानी) चिकित्सा की किताबें पढ़कर मंसूर को सुना रहा था। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम खामोश बैठे सुनते रहे। जब वह मर्द हिन्दी सुनाकर फारिग हुआ तो इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम से बोला जो कुछ मेरे पास है वह आपको चाहिए? तो इमाम ने फरमाया नहीं, इसलिये कि तुम्हारे पास जो कुछ है उससे बेहतर हमारे पास खुद मौजूद है। उसने कहा आपके पास क्या है? 

आपने फरमाया मैं सर्दी का इलाज गर्मी से करता हूं और गर्मी का सर्दी से। तरी का खुशकी से इलाज करता हूं और खुशकी का तरी से और तमाम फैसले खुदा के हवाले कर देता हूं। रसूल अल्लाह (स.) ने जो कुछ फरमाया है उसपर अमल करता हूं। चुनान्चे रसूल (स.) ने ये फरमाया कि वाजय रहे कि मेदा (पेट) बीमारियों का घर है और बुखार खुद एक दवा है और मैं बदन को उस तरफ पलटाता हूं जिस का वह आदी है। 

मर्द हिन्दी ने कहा कि यही तो तिब (चिकित्सा) है इस के अलावा और क्या है। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया क्या तुम्हारा ये ख्याल है कि मैंने किताबें पढ़कर ये सबक हासिल किया है? उस ने कहा जी हाँ। आपने फरमाया नहीं, खुदा की कसम मैंने जो कुछ लिया है सिर्फ अल्लाह से लिया है। अच्छा बताओ मैं इल्म तिब ज्यादा जानता हूं या तुम? मर्द हिन्दी ने कहा नहीं आप से ज्यादा मैं जानता हूं। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया अच्छा ये दावा है तो मैं तुम से कुछ सवाल करता हूं। 

ऐ हिन्दी ये बताओ कि सर में हड्डियों के जोड़ क्यों है? उसने कहा मैं नहीं जानता। आपने फरमाया और सर के ऊपर बाल क्यों बनाये गये हैं? उस ने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया और पेशानी (माथे) को बालों से खाली क्यों रखा गया है। उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया और पेशानी पर ये खुतूत और लकीरें क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने  फरमाया दोनों भवों को दोनों आँखों के ऊपर क्यों बनाया गया? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ आँखें बादाम की तरह क्यों बनाई गयीं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया ये नाक दोनों आँखों के दरमियान क्यों बनाई गयी? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया नाक के सुराख नीचे क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया होंठ और मूंछें मुंह के ऊपर क्यों बनाई गयीं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ सामने के दाँत तेज़ क्यों हैं? दाढ़ के दाँत चौड़े और साइड के लम्बे क्यों हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने  फरमाया मर्दों के दाढ़ी क्यों निकलती है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ नाखूनों और बालों में जान क्यों नहीं होती? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ इंसान का दिन सुनोबरी शक्ल में क्यों बनाया गया? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ फेफड़ों को दो टुकड़ों में क्यों बनाया गया? और उसकी हरकत अपनी जगह पर क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ जिगर उभरा हुआ कुबड़े की शक्ल में क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। फरमाया बताओ गुरदा लोबिया की दाने की शक्ल में क्यों है? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम ने फरमाया बताओ घुटने पीछे की तरफ क्यों मुड़ते हैं? उसने कहा मुझे नहीं मालूम। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया तुझे नहीं मालूम ये दुरुस्त है लेकिन मुझे मालूम है। अब मर्द हिन्दी ने कहा आप बताईए।

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि सर में हड्डियों के जोड़ इसलिए हैं कि ये अन्दर से खोखला है अगर ये बिला जोड़ और बिला फस्ल हों तो बहुत जल्द सर में दर्द होने लगेगा। जोड़ व फस्ल की वजह से सरदर्द दूर रहता है। सर पर बालों की पैदाइश इसलिए है ताकि उसकी जड़ों के जरिये तेल वगैरा दिमाग तक पहुंचे और उस के किनारों से नुकसानदायक बुखारात निकलते रहें और सर गर्मी व सरदी के असर को दूर रखे। पेशानी (माथे) को बालों से खाली इसलिए रखा गया कि वहाँ से आँखों की तरफ रोशनी की रेजिश होती है और पेशानी पर खुतूत (लकीरें) इसलिए हैं कि सर से जो पसीना बह कर आँखों की तरफ आये वह इस पर रुका रहे जिस तरह ज़मीन पर नहरें और दरिया जो पानी को फैलने से बचाते हैं। और आँखों पर दोनों भवें इसलिए पैदा की गयीं ताकि आँखों तक ज़रूरत से ज्यादा रोशनी न पहुंचे। ऐ हिन्दी क्या तुम नहीं देखते कि रोशनी तेज़ होती है तो लोग अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं ताकि हद से ज्यादा रोशनी आँखों तक न पहुंचे। इन दोनों आँखों के दरमियान नाक अल्लाह ने इसलिए रख दी ताकि दोनों के बीच रोशनी बराबर से तक़सीम (वितरित) हो जाये। आँखों को बादाम की शक्ल में इसलिए बनाया ताकि उसमें सुरमे की सलाई दवा के साथ मुनासिब तौर पर चल सके और आँखों का मर्ज दूर हो सके। नाक के सुराख इसलिए नीचे रखे ताकि दिमाग से जो खराब माद्दा निकले वह नीचे गिर जाये और नाक से खुशबू ऊपर जाये। अगर ये सुराख ऊपर होते तो न दिमाग का फासिद माद्दा नीचे गिरता और न किसी शय की खुशबू वगैरा मिलती। और मूंछें व होंठ मुंह के ऊपर इसलिए रखे गये ताकि वह दिमाग से बहते हुए फासिद माद्दे को रोके और मुंह तक न पहुंचे ताकि इंसान के खाने पीने की चीज़ों को गंदा न करे। और मरदों के चेहरे पर दाढ़ी इसलिए ताकि एक नज़र में औरत मर्द की पहचान हो सके। और पता चल जाये कि आँखों के सामने मर्द है या औरत। सामने के दाँतों को तेज़ इसलिए बनाया कि इससे चीज़ों को काटते हैं और दाढ़ के दाँत चौकोर इसलिए कि उससे गिज़ा को पीसना है और किनारे के दाँतों को लम्बा इसलिए रखा ताकि दाढें और सामने के दाँत मज़बूती से जमे रहें। जिस तरह किसी इमारत के सुतून (पिलर) होते हैं। 

हथेलियों को बालों से अल्लाह ने इसलिए खाली रखा कि इंसान इसी से छूता और मस करता है। अगर इनमें बाल हों तो इंसान को पता न चले कि क्या चीज़ छू रहा है और बाल व नाखून को जिंदगी से इसलिए खाली रखा कि उनका लम्बा होना गन्दगी का सबब है। उनका तराशना अच्छा है। अगर दोनों में जान होती तो इंसान को उन्हें काटने में तकलीफ होती। 

और दिल सुनोबर के फल की तरह इसलिए है कि वह सरंगूं रहे और उस का सर पतला रहे, इसलिए कि वह फेफड़ों में दाखिल होकर उससे ठंडक हासिल करे। ताकि उसकी गरमी से दिमाग भुन न जाये।
(यह जुमला निहायत गहराई लिये हुए है अत: इसपर मैं अपनी अगली पोस्ट में विस्तार से रोशनी डालूंगा।)

फेफड़ों को दो टुकड़ों में इसलिए बनाया ताकि उन दोनों के भिंचने और दबाव में वह अन्दर रहे और उन की हरकत से राहत हासिल करे। और जिगर को कुबड़े की शक्ल इसलिए दी ताकि वह मेदे पर वज़न डाले और पूरा उसपर गिर जाये और निचोड़ दे ताकि वह बुखारात वगैरा जो उसमें हैं निकल जायें। और गुरदे को लोबिया के दानों की शक्ल इसलिए दी क्योंकि मनी (वीर्य) का अनज़ाल इसी पर बूंद बूंद होता है। अगर ये चौकोर या गोल होता तो पहला कतरा दूसरे को रोक लेता और उस के निकलने से किसी जानदार को लज्ज़त न महसूस होती। क्योंकि मनी रीढ़ की गिरहों से गुर्दे पर गिरती है जो कपड़े की तरह सिकुड़ता और फैलता रहता है और मनी को एक एक क़तरा करके मसाने की तरफ फेंकता रहता है जैसे कमान से तीर। और घुटने को पीछे की तरफ इसलिए अल्लाह ने मोड़ा कि इंसान अपने आगे की तरफ चले तो उस की हरकत मातदिल (बैलेन्स्ड) रहे, अगर ऐसा न होता तो आदमी चलने में गिर पड़ता। 

उस मर्द हिन्दी ने कहा आपको ये इल्म कहाँ से मिला? फरमाया मैंने ये इल्म अपने आबाये कराम से और उन्होंने रसूल अल्लाह (स.) से और उन्होंने हज़रते जिब्रील (अ.) से और उन्होंने उस रब्बुलआलमीन से जिसने तमाम अजसाम व अरवाह को खल्क किया। उस मर्द हिन्दी ने कहा आप सच फरमाते हैं, मैं गवाही देता हूं कि नहीं है कोई अल्लाह सिवाय उसी अल्लाह के और मोहम्मद उसी अल्लाह के रसूल और बन्दे हैं। और आप अपने ज़माने के सबसे बड़े आलिम हैं।

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