आज
उन का जन्मदिन है। 5 मई नहीं होता तो जुलाई या दिसंबर का कोई दिन हो सकता
था। उस से क्या फर्क पड़ता है? बस वे भी जन्मे थे दुनिया में जनमने वाले
करोड़ों करोड़ बच्चों की तरह। हर किसी को दुनिया अच्छी नहीं लगती, हर कोई
दुनिया बदलना चाहता है। चंद कोशिशों के बाद उस के प्रयास टूट जाते हैं।
लेकिन उस ने अपना प्रयास नहीं त्यागा। अथक परिश्रम से जाना कि दुनिया कैसे
बदलती है? और कैसे बदली जा सकती है।
बहुत कुछ लिखा गया है उन के द्वारा भी, उन पर भी। पर आज याद आती है उन की ये कविता ...
असली इन्सान की तरह जियेंगे
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह नहीं स्वीकार
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए
उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोशों के द्वार
मेरे लिए खोल
अपने प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूँगा मैं
आओ
हम बीहड़ और सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि हमें स्वीकार नहीं
छिछला निरुदेश्य और लक्ष्यहीन जीवन
हम ऊंघते, कलम घिसते
उत्पीडन और लाचारी में नहीं जियेंगे
हम आकांचा, आक्रोश, आवेग और
अभिमान से जियेंगे.
असली इन्सान की तरह जियेंगे.
... कार्ल मार्क्स
आज
उन का जन्मदिन है। 5 मई नहीं होता तो जुलाई या दिसंबर का कोई दिन हो सकता
था। उस से क्या फर्क पड़ता है? बस वे भी जन्मे थे दुनिया में जनमने वाले
करोड़ों करोड़ बच्चों की तरह। हर किसी को दुनिया अच्छी नहीं लगती, हर कोई
दुनिया बदलना चाहता है। चंद कोशिशों के बाद उस के प्रयास टूट जाते हैं।
लेकिन उस ने अपना प्रयास नहीं त्यागा। अथक परिश्रम से जाना कि दुनिया कैसे
बदलती है? और कैसे बदली जा सकती है।
बहुत कुछ लिखा गया है उन के द्वारा भी, उन पर भी। पर आज याद आती है उन की ये कविता ...
असली इन्सान की तरह जियेंगे
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह नहीं स्वीकार
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए
उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोशों के द्वार
मेरे लिए खोल
अपने प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूँगा मैं
आओ
हम बीहड़ और सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि हमें स्वीकार नहीं
छिछला निरुदेश्य और लक्ष्यहीन जीवन
हम ऊंघते, कलम घिसते
उत्पीडन और लाचारी में नहीं जियेंगे
हम आकांचा, आक्रोश, आवेग और
अभिमान से जियेंगे.
असली इन्सान की तरह जियेंगे.
... कार्ल मार्क्स
बहुत कुछ लिखा गया है उन के द्वारा भी, उन पर भी। पर आज याद आती है उन की ये कविता ...
असली इन्सान की तरह जियेंगे
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह नहीं स्वीकार
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए
उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोशों के द्वार
मेरे लिए खोल
अपने प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूँगा मैं
आओ
हम बीहड़ और सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि हमें स्वीकार नहीं
छिछला निरुदेश्य और लक्ष्यहीन जीवन
हम ऊंघते, कलम घिसते
उत्पीडन और लाचारी में नहीं जियेंगे
हम आकांचा, आक्रोश, आवेग और
अभिमान से जियेंगे.
असली इन्सान की तरह जियेंगे.
... कार्ल मार्क्स
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