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22 मई 2013

कमजोर आंखों के बुलंद हौसले



city news
कोटा। कुछ कदम चलती है कि आंखें सूख जाती है, एक आंख से दिखाई नहीं देता, दूसरी से भी नजर उठाकर नहीं देख सकती, हर पांच मिनट में आंखों में दवा डालनी पड़ती है। इसके बावजूद स्टेशन क्षेत्र स्थित संजय कॉलोनी निवासी नाहिद ने हौसला नहीं छोड़ा। यह और बात है कि यहां भी किस्मत ने साथ नहीं दिया, बारहवीं आट्र्स के परिणामों में नाहिद एक अंक से राज्य स्तरीय वरीयता सूची में शामिल होने से रह गई। उसने 90.80 प्रतिशत अंक प्राप्त किए।
दो साल छूटी पढ़ाई
नाहिद ने बताया कि सात साल की थी जब बुखार आया और दवा रिएक्शन कर गई। पूरा शरीर खराब हो गया। दो साल तक जयपुर और दिल्ली के चक्कर काटे। अभी एम्स का इलाज चल रहा है। स्टीवन जॉन्सन सिन्ड्रोम से ग्रसित हूं, सीरियस ड्राई आई होने के कारण आंखों में आंसू नहीं बनते और दवा डालकर नमी रखनी पड़ती है। तीन-चार मिनट में आंखें सूख जाती हैं और खुलना बंद हो जाती है। दवा हमेशा साथ रखनी पड़ती है। बीमारी के चलते स्कूल भी रोजाना जाना नहीं हो पाता।
बस अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं
जीवन में कुछ बनने की इच्छा के सवाल पर नाहिद ने कहा कि मैं सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं। क्या बनूंगी या बनना चाहती हूं यह अभी तय नहीं है, लेकिन इतनी सक्षम होना चाहती हूं कि आत्मनिर्भर रहूं। आगे बीए की पढ़ाई करूंगी। अभी तक किसी तरह की कोचिंग नहीं की।
बहनों की मदद
नाहिद के पिता मुश्ताक मोहम्मद रेलवे में ओएस हैं। मां नगमा गृहिणी हैं। चार बहने हैं, तीसरे नम्बर की नाहिद खुद तो पढ़ती है ही, बहनों की भी पढ़ाई में मदद करती है। दसवीं में भी नाहिद ने 88.17 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। सफलता के लिए नाहिद ऊपर वाले और घरवालों का सहयोग बताती है।

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