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10 मई 2013

राजा ने खाया धोखा, लिखीं स्त्री के सौंदर्य से जुड़ी आंखें खोल देने वाली ये बातें!



प्रेम को जानने-समझने के कई पहलू हो सकते हैं। अगर धर्म के नजरिए से गौर करें तो सत्य, प्रेम की भावना और प्रेम, क्षमा भाव को बढ़ाता है। वहीं प्रेम की गहराई को इस आसान तरीके से भी समझाया गया है कि प्रेम जब शरीर तक रहे तो वासना बन जाता है। मन तक पहुंचे तो भावना बन जाता है और आत्मा को छू ले तो साधना बन जाता है।
आज के दौर में जबकि आए दिन स्त्री पर अपराध या प्रेम में असफलता से उपजी निराशा और बदले की भावना से घात या आत्मघात के प्रसंग सामने आते रहते हैं। ऐसे में हिन्दू धर्म संस्कृति और इतिहास से स्त्री प्रेम से जुड़े कई प्रसंग न केवल ज़िंदगी से जुड़ी बातों और सच्चाइयों को नजदीक से समझने और जानने का नजरिया देते हैं, बल्कि उनमें समाया गूढ़ ज्ञान कई उलझनों से बचने और निपटने का तरीका भी उजागर करता हैं।
इसी कड़ी में सदियों पहले उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन ) के न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य (जिनके नाम से ही हिन्दू वर्ष विक्रम संवत पुकारा जाता है) के बड़े भाई का स्त्री के मोह और प्रेम में जकड़कर धोखा खाना और फिर राजा होकर भी प्रतिशोध के बजाए क्षमा भाव के साथ स्त्री प्रेम को आत्मज्ञान के रूप में जीवन में उतार, स्त्री और उसके सौदर्य से जुड़ी कई आंखे खोल देने वाली बातें उजागर करना रोचक होने के साथ ही केवल स्त्री मोह व आकर्षण में उलझकर पतन के रास्ते पर न जाने की नसीहत भी है।
सदियों पुरानी उनकी प्रसिद्ध किताब में समाई ये बातें हिन्दू धर्म और साहित्य का अहम अंग है। जानिए कौन थे राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई? और सदियों पुरानी उनकी किताब में समाई स्त्री व उसके सौदर्य से जुड़ी वे बातें, जिनको केवल ऊपरी तौर पर विचार करने वाले कई लोग भोग-विलासी बातें मानते हैं, वहीं विद्वानों के मुताबिक ये बातें इंसानी मन व जीवन की बुनियादी सच्चाई हैं –

राजा विक्रमादित्य के ये बड़े भाई थे – राजा भर्तृहरि। राजा भर्तृहरि न्याय, नीति, धर्मशास्त्र, भाषा, व्याकरण के विद्वान होने के साथ प्रजा और प्रकृति को भी चाहने वाले थे। वे धर्म विरोधियों को कड़ी सजा देने से नही चूकते थे। वे धर्मनिष्ठ, दार्शनिक व अमरयोगी भी माने जाते हैं। लेकिन वैरागी होने के पीछे उनके जीवन का यह अहम प्रसंग जुड़ा है –
राजा भर्तृहरी ज्ञानी और 2 पत्नियां होने के बावजूद भी पिंगला नाम की अति सुंदर राजकुमारी पर मोहित हुए। राजा ने पिंगला को तीसरी पत्नी बनाया। पिंगला के रूप-रंग पर आसक्त राजा विलासी हो गए। यहां तक कि वे पिंगला में मोह में उसकी हर बात को मानते और उसके इशारों पर काम करने लगे। किंतु इसका फायदा उठाकर पिंगला भी व्यभिचारी हो गई और घुड़साल के रखवाले से ही प्रेम करने लगी। आसक्त राजा इस बात और पिंगला के बनावटी प्रेम को जान ही नहीं पाए।
जब छोटे भाई विक्रमादित्य को यह बात मालूम हुई और उन्होंने बड़े भाई के सामने इसे जाहिर किया। तब भी राजा ने पिंगला की चालाकी से रची बातों पर भरोसा कर विक्रमादित्य के चरित्र को ही गलत मान राज्य से निकाल दिया।
इस बात के बरसों बाद पिंगला की चरित्रहीनता तब उजागर हुई जब एक तपस्वी ब्राह्मण ने घोर तपस्या से देवताओं से वरदान में मिला अमर फल (जिसे खाने वाला अमर हो जाता है) राजा को अमर करने की इच्छा से भेंट किया। आसक्त राजा ने इसे पिंगला को दे दिया, ताकि वह लंबे वक्त तक रूप व सौंदर्य का सुख भोग सके। किंतु पिंगला ने उसे घुडसाल के रखवाले को दे दिया। उस रखवाले ने उस वैश्या को दे दिया, जिससे वह प्रेम करता था।
वैश्या यह सोचकर कि इस अमर फल को खाने से ज़िंदगीभर वह पाप कर्म में डूबी रहेगी, वह राजा को यह कहकर भेंट करने लगी कि आप के अमर होने से प्रजा भी लंबे वक्त तक सुखी रहेगी।

राजा भर्तृहरि के पिंगला को दिए उस फल को वैश्या के पास देख होश उड़ गए। उनको भाई की बातें और पिंगला का विश्वासघात समझ में आ गया। राजा भर्तृहरि की आंखे खुलीं और पिंगला के लिए घृणा भी जागी। फिर भी पिंगला व उस रखवाले को सजा न देकर वे स्त्री और संसार को लेकर विरक्त हो गए। फौरन सारा राज-पाट छोड़ दिया।
आत्मज्ञान की स्थिति में राजा भर्तृहरि ने भर्तृहरि शतक ग्रंथ में समाए "श्रृंगार शतक" के जरिए सौंदर्य खासतौर पर स्त्री सौंदर्य से जुड़ी वे पहलू उजागर किए, जिनको कोई मनुष्य नकार नहीं सकता।
स्मितेन भावेन च लज्जया भिया
परांमुखैरर्द्ध कटाक्ष वीक्षणैः।
वचोभिरीर्ष्या कलहेन लीलया।
समस्त भावैः खलु बन्धानं स्त्रियः।।
सरल शब्दों में मतलब है कि स्त्री की मोहित करने वाली हल्की हंसी, शरमाना, शिकायत के भाव से नजरें फेरना, मीठे बोल या फिर तानों से भरी बात ही व तरह-तरह के हाव-भाव किसी भी सांसारिक व्यक्ति को बंधन में बांध देते हैं या मोह जाल में फंसा लेते हैं।

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