आज पता चला अपनी औकात का,
अपना वजूद निकला सूखे पात सा,
जिधर चली हवा, उधर ही उड़ गया,
जब रुकी हवा ओंधे मुहँ गिरा गया,
समझा था सिकंदर अपने आप को,
दो बूंद पानी न मिला, तो मर गया,
न जाने क्यों ये ख्वाब सजाता रहा,
मालूम न था हूँ, खिलौना माटी का,
माटी से बना, माटी में मिल जाउंगा,
क्या लेके आया था क्या लेके जाउंगा,
मुसाफिर हूँ यहाँ ये मेरा ठिकाना नहीं,
कहाँ मेरा घर है अभी तक जाना नहीं,
अपने बेगाने मेरे सब यही रह जायेंगे,
बस मेरे किये कुछ पुन्य साथ जायेंगे
देना पड़ेगा हिसाब, अपने सारे कर्म् का
छोड़ राह पाप की अपना रास्ता धर्म का
----------------भूषण लाम्बा "भूषण"
आज पता चला अपनी औकात का,
अपना वजूद निकला सूखे पात सा,
जिधर चली हवा, उधर ही उड़ गया,
जब रुकी हवा ओंधे मुहँ गिरा गया,
समझा था सिकंदर अपने आप को,
दो बूंद पानी न मिला, तो मर गया,
न जाने क्यों ये ख्वाब सजाता रहा,
मालूम न था हूँ, खिलौना माटी का,
माटी से बना, माटी में मिल जाउंगा,
क्या लेके आया था क्या लेके जाउंगा,
मुसाफिर हूँ यहाँ ये मेरा ठिकाना नहीं,
कहाँ मेरा घर है अभी तक जाना नहीं,
अपने बेगाने मेरे सब यही रह जायेंगे,
बस मेरे किये कुछ पुन्य साथ जायेंगे
देना पड़ेगा हिसाब, अपने सारे कर्म् का
छोड़ राह पाप की अपना रास्ता धर्म का
----------------भूषण लाम्बा "भूषण"
अपना वजूद निकला सूखे पात सा,
जिधर चली हवा, उधर ही उड़ गया,
जब रुकी हवा ओंधे मुहँ गिरा गया,
समझा था सिकंदर अपने आप को,
दो बूंद पानी न मिला, तो मर गया,
न जाने क्यों ये ख्वाब सजाता रहा,
मालूम न था हूँ, खिलौना माटी का,
माटी से बना, माटी में मिल जाउंगा,
क्या लेके आया था क्या लेके जाउंगा,
मुसाफिर हूँ यहाँ ये मेरा ठिकाना नहीं,
कहाँ मेरा घर है अभी तक जाना नहीं,
अपने बेगाने मेरे सब यही रह जायेंगे,
बस मेरे किये कुछ पुन्य साथ जायेंगे
देना पड़ेगा हिसाब, अपने सारे कर्म् का
छोड़ राह पाप की अपना रास्ता धर्म का
----------------भूषण लाम्बा "भूषण"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)