आपका-अख्तर खान

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22 अप्रैल 2013

आज पता चला अपनी औकात का,


आज पता चला अपनी औकात का,
अपना वजूद निकला सूखे पात सा,

जिधर चली हवा, उधर ही उड़ गया,
जब रुकी हवा ओंधे मुहँ गिरा गया,

समझा था सिकंदर अपने आप को,
दो बूंद पानी न मिला, तो मर गया,

न जाने क्यों ये ख्वाब सजाता रहा,
मालूम न था हूँ, खिलौना माटी का,

माटी से बना, माटी में मिल जाउंगा,
क्या लेके आया था क्या लेके जाउंगा,

मुसाफिर हूँ यहाँ ये मेरा ठिकाना नहीं,
कहाँ मेरा घर है अभी तक जाना नहीं,

अपने बेगाने मेरे सब यही रह जायेंगे,
बस मेरे किये कुछ पुन्य साथ जायेंगे

देना पड़ेगा हिसाब, अपने सारे कर्म् का
छोड़ राह पाप की अपना रास्ता धर्म का

----------------भूषण लाम्बा "भूषण"

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