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10 अप्रैल 2013

चण्डी


चण्डी

काली देवी के समान ही चण्डी देवी को माना जाता है,ये कभी कभी दयालु रूप में और प्राय: उग्र रूप में पूजी जाती है,दयालु रूप में वे उमा,गौरी,पार्वती,अथवा हैमवती,जगन्माता और भवानी कहलाती है,भयावने रूप में दुर्गा,काली, और श्यामा,चण्डी अथवा चण्डिका,भैरवी आदि के नाम से जाना जाता है,अश्विन और चैत्र मास की की शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रा में चण्डी पूजा विशेष समारोह के द्वारा मनायी जाती है.
  • पूजा के लिये नवरात्रा स्थापना के दिन ब्राह्मण के द्वारा मन्दिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी के एक कलश की स्थापना की जाती है,कलश में पानी भर लिया जाता है,और आम के पत्तों से उसे आच्छादित कर दिया जाता है,कलश के ऊपर ढक्कन मिट्टी का जौ या चावल से भर कर रखते है,पीले वस्त्र से उसे ढक दिया जाता है,ब्राह्मण मन्त्रों को उच्चारण करने के बाद उसी कलश में कुशों से पानी को छिडकता है,और देवी का आवाहन उसी कलश में करता है,देवी चण्डिका के आवाहन की मान्यता देते हुये कलश के चारों तरफ़ लाल रंग का सिन्दूर छिडकता है,मन्त्र आदि के उच्चारण के समय और इस नौ दिन की अवधि में ब्राह्मण केवल फ़ल और मूल खाकर ही रहता है,पूजा का अन्त यज्ञ से होता है,जिसे होम करना कहा जाता है,होम में जौ,चीनी,घी और तिलों का प्रयोग किया जाता है,यह होम कलश के सामने होता है,जिसमे देवी का निवास समझा जाता है,ब्राह्मण नवरात्रा के समाप्त होने के बाद उस कलश के पास बिखरा हुआ सिन्दूर और होम की राख अपने प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों के घर पर लेकर जाता है,और और सभी के ललाट पर लगाता है.इस प्रकार से सभी का देवी चामुण्डा के प्रति एकाकार होना माना जाता है,भारत और विश्व के कई देशों के अन्दर देवी का पूजा विधान इसी प्रकार से माना जाता है.
प्राचीन हिन्दु और बौद्ध मन्दिरों को इंडोनेशिया में चण्डी कहा जाता है। इसके पीछे तथ्य यह है कि इनमे से कई देवी (अथवा चण्डी) उपासना के लिये स्थापित किये गये थे। इनमे से सबसे विख्यात प्रमबनन चण्डी है।

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