आपका-अख्तर खान

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20 अप्रैल 2013

जो पिघली थी मेरे दिल में

"एक कविता
जो पिघली थी मेरे दिल में
जो बहती थी मेरे मन में
आज बिखरी है ,---तुम्हें अच्छी लगेगी
मैं जानता हूँ
इस कदर मेरा बिखरना ---तुम्हें अच्छा लगा है
रगड़ कर मेरा निखरना तुम्हें सच्चा लगा है
मेरा बिखरना देख कर तुम खुश हुए कविता समझ कर
इस आचरण के व्याकरण पर गौर कर लो
बियांबान दौर में जब सत्य भी सन्नाटे से सहमा था
मैं चीखा था
मेरे बयानों में जो कांपती आवाज में दर्ज था, -- वह दर्द तेरा था
लोग उसको कविता समझ बैठे
एक कविता
जो पिघली थी मेरे दिल में
जो बहती थी मेरे मन में
आज बिखरी है ,---तुम्हें अच्छी लगेगी
मैं जानता हूँ
इस कदर मेरा बिखरना ---तुम्हें अच्छा लगा है." ----राजीव चतुर्वेदी

1 टिप्पणी:

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