आपका-अख्तर खान

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18 अप्रैल 2013

अरे तुम तो जलधर थे-


अरे तुम तो जलधर थे-
धीर अडिग प्रशांत - यार
कैसे हो गए अशांत - बातों से
खामखाह तूफ़ान उठाने लगे .

अपनी सीमाओं का पता नहीं
दूसरों को उनकी सीमाएं -
क्यों बताने लगे .
अब तो लगता है - अन्ना का
संग भी - लोगों को तुम्हारे
सोचे समझे 'बहाने' लगे .

ये जनता की कोर्ट है -प्यारे
तारीख नहीं - सीधे इन्साफ करती है
ये भीड़ है - कहाँ किसी को माफ़ करती है .
ऐसे रोज रोज पिटोगे - इज्ज़त का
फालतू में कचरा करवाओगे .

आस्मां में उड़ने की छोडो -मियां
अभी तो पाँव के नीचे - जमीन है
ऐसे ही दो चार एपिसोड- और हुए
तो इससे भी जाओगे .

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