आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

28 अप्रैल 2013

जब तन्हा मन मचलता है ...


जब तन्हा मन मचलता है ....
ख्यालों में जब कोई न रहता है ...
बुझती हुई एक चिंगारी में ....
हवा एक लौ रौशन कर जाती है ....
कभी बुझती हुई , कभी जलती हुई ....
वो जीने के हर गुर सीखा जाती है .....
धीमी रफ़्तार में चलकर .....
किसी से कुछ भी न कह कर ...
वो रफ्तार - ए - जिंदगी समझा जाती है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...