जब तन्हा मन मचलता है ....
ख्यालों में जब कोई न रहता है ...
बुझती हुई एक चिंगारी में ....
हवा एक लौ रौशन कर जाती है ....
कभी बुझती हुई , कभी जलती हुई ....
वो जीने के हर गुर सीखा जाती है .....
धीमी रफ़्तार में चलकर .....
किसी से कुछ भी न कह कर ...
वो रफ्तार - ए - जिंदगी समझा जाती है |
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