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20 अप्रैल 2013

मुझे इतनी जोर से प्यार मत करो अंकल

पाँच वर्ष पहले यह कविता लिखी थी |क्या कुछ बदला है इन पाच सालों में-
इंसान नहीं था

मुझे इतनी जोर से प्यार मत करो अंकल
देखो तो,मेरे होंठो से निकल आया है खून
मेरे पापा धीरे से चूमते हैं सिर्फ माथा
मुझे मत मारो अंकल ..दुखता है
मैं आपकी बेटी से भी छोटी हूँ
क्या उसे भी मारते हो इसी तरह
मेरे कपड़े मत उतारो अंकल
अभी नवरात्रि में
चूनर ओढ़ाकर पूजा था न तुमने
तुम्हें क्या चाहिए अंकल
ले लो मेरी चेन घड़ी,टाप्स,पायल
और चाहिए तो ला दूंगी अपनी गुल्लक
उसमें ढेर सारे रूपये हैं
बचाया था अपनी गुड़िया की शादी के लिए
सब दे दूंगी तुम्हें
अंकल-अंकल ये मत करो
माँ कहती है -ये बुरा काम होता है
भगवान जी तुम्हें पाप दे देंगे
छोड़ो मुझे,वरना भगवान जी को बुलाऊंगी
टीचर कहती हैं -भगवान बच्चों की बात सुनते हैं
...अब बच्ची लगातार चीख रही थी
पर भगवान तो क्या,दूर-दूर तक
कोई इंसान भी न था .

4 टिप्‍पणियां:

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