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17 अप्रैल 2013

वो जुगनुओ की ठंडी - चमक

Satish Sharma

वो जुगनुओ की ठंडी - चमक
  चिंगारियों से खेलने का जूनून
और दहकती आग का कारोबार -
छोड़ हर किसी को सूट
नहीं करता यार .

दिवाली के अनार - वो
फुलझड़ियों की - चमक की
जय जयकार - पर इसमें
खतरा कहाँ है यार .

भस्म करदे - आग उसे कहाँ कहते हैं
ये तो रोशन दीये - दिल में जले रहते हैं
झाँक कर - देख मेरे भीतर -
अगणित दीपकों की कतार .

सभी को तो है - रौशनी की दरकार -
जान ले - मान ले
आग इसी को कहते हैं यार .

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