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17 अप्रैल 2013

18, 19 को बस, यह दुर्गाचालीसा पाठ भी होगा संकटमोचक


18, 19 को बस, यह दुर्गाचालीसा पाठ भी होगा संकटमोचक
हिन्दू धर्म परंपराओं में देवी दुर्गा को आदिशक्ति माना जाता है। मान्यता यह भी है कि दुर्गा का सच्चा उपासक ऐसी ऊर्जा और ऐसी अदृश्य शक्तियों का स्वामी होता है, जिसके कारण उसका जीवन दुःख, मुश्किलों व खतरों से सुरक्देवी की सामान्य पूजा गंध, फूल, अक्षत, धूप, दीप से कर इस दुर्गा चालीसा का पाठ पूरी आस्था से करें - 
 
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महा विशाला। नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रहृ विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरा रुप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा कर प्रहलाद बचायो। हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रुप धरो जग माही। श्री नारायण अंग समाही॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी धूमावति माता। भुवनेश्वरि बगला सुखदाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणि। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजे। जाको देख काल डर भाजे॥
सोहे अस्त्र और तिरशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्ही विराजत। तिहूं लोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताको छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहू काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रुप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछतायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतवे। मोह मदादिक सब विनशावै॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी॥
करौ कृपा हे मातु दयाला। ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला॥
जब लगि जियौं दया फल पाऊँ। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परम पद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
षित रहता है। 
 
शास्त्रों में ऐसी ही दिव्य शक्तियों से ज़िंदगी में मुसीबतों से बचने के लिए दुर्गा चालीसा पाठ का महत्व बताया गया है। यह चालीसा देवी की अद्भुत शक्तियों और स्वरूप का ही स्मरण है, जिसका हर रोज पाठ तो ऊर्जावान रखता ही है, किंतु नवरात्रि के दिन यह पाठ शक्ति उपासना से संकटमोचन के नजरिए से बहुत ही असरदार माना गया है। अगली स्लाइड पर क्लिक कर जानिए यह संकटमोचक देवी स्मरण उपाय -

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