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23 मार्च 2013

"भूख -- तुम्हारे लिए होगी एक दर्दनाक मौत की इबारत

"भूख -- तुम्हारे लिए होगी एक दर्दनाक मौत की इबारत
हम तो हैं आढ़तिये हमारी खड़ी होती हैं इसी पर इमारत
हम हैं नेता हमारे लिए है हर भूख से मरनेवाला मुर्दा बस महज एक मुद्दा
हमारी तो है राशन की दूकान
खरीद सको तो खरीदो बरना तुम्हारी भूख से हमें क्या काम
सुना है आप डॉक्टर हैं सरकारी, आप भी खाते हैं घूस की तरकारी
डॉक्टर की राय में भूख से मौत नहीं होती मौत तो खून की कमी से होती है
मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष तो वह होता है जिसके घूस खाने से पूरा देश ही रोता है
घूस की डकार लेकर वह बताता है कि --
भूख से मौत बहुत बुरी बात है पर उसका प्रतिशत कम और औसत ज्यादा है
आपके समझ नहीं आई होगी उनकी यह बात पर देश भी अभी नहीं समझ पाया है
क़ानून के जानकार बताते हैं कि संविधान में भूख दर्ज ही नहीं है अतः असंवैधानिक है
भूख लेखकों कवियों लफ्फाजों के लिए है साहित्य का कच्चा माल
एनजीओ वाले भूख के नाम पर जो दूकान चलाते हैं उसके लिए "भूख" एक शुभ सा समाचार है
किसान फसल बो कर भूख मिटा रहा है और हम
और हम भूख उगा रहे हैं
देखना एक दिन फसल बो कर भूख मिटा रहा किसान भूखा मर जाएगा
और हमने तो शब्दों से कागज़ पर जो भूख की फसल बोई है उस पर पैसे का खेत लहलहाएगा
पर याद रहे --भूख में जिन्दगी बेहद सुन्दर होती है
कभी देखा है फ़न फैलाए सांप
डाल पर उलटा लटक कर फल कुतरता तोता
चोंच से दाना चुगते चिड़ियों के बच्चे
शिकार का पीछा करता चीता
दूध पीता बछड़ा
अपनी माँ की छाती से चिपटा दूध पी रहा बच्चा
हाथ में हथियार लेकर अधिकार के लिए लड़ता भूखा आदमी
वैसे ही जैसे जिन्दगी के महाभारत में
हाथ में रथ का पहिया ले कर खड़े हों कृष्ण." -----राजीव चतुर्वेदी
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"सुना है संवेदनाओं में भूख एक समृद्ध शब्द है,
हमने कैलोरी में नहीं उसे कविता से नापा है."----राजीव चतुर्वेदी
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"भूखी ख्वाहिश को उम्मीद का निवाला देकर,
उसने कहा सो जाओ सुबह तो आयेगी कभी." -----राजीव चतुर्वेदी
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"भूख पर शब्द उगाने से बेहतर था हम अन्न उगाते खेतों में,
पर वहां हमें अच्छा लिखने की शाबासी कैसे मिलती ?" ----राजीव चतुर्वेदी

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