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18 मार्च 2013

" मिज़ाज अच्छे हैं "

जनाब राहत इंदौरी साहब का अशोक मिज़ाज की शायरी और शख्सियत पर आलेख जो कई उर्दू रिसालों मे साया हो चुका है दोस्तों की फरमाइश पर हिन्दी मे पेश है

" मिज़ाज अच्छे हैं "

इन दिनों मुशायरों में जिस तरह की आपसी खींचतान देखने को मिलती है
वो अफ़सोसनाक है,शायराना रक़ाबतें और चश्मकें गये वक़्तों मे भी थीं,
मगर अब ज़ियादा हैन.तब एक हद हुआ करती थीलकिन अब सारी हदें
ख़त्म हो चुकी हैं रवादारी जैसे दुनिया से उठ चुकी है,मिज़ाजों की कड़वाहट
ने सारे माहॉल को ज़हरीला बना दिया है.
इस तरह के माहौल में अशोक "मिज़ाज" का दम गनीमत मालूम होता है
उसके लहजे में ठहराव है,आवाज़ संभली हुई है और कलाम में किसी क़िस्म
का तााक़ूब(पीछा करना) नहीं मिलता और इसीलिए वो अहतराम के क़ाबिल है.
अशोक जैसे शायर हमारे तबाह होते हुए माअसरे के लिए एक मिसाली हैसियत
रखते हैं. ऐसा माहौल जहाँ आदमी सिर्फ़ अपनी कहना चाहता हो किसी को सुनने को
तैयार ना हो लोगों की तवज्जो हासिल करने के लिए अपनी आवज़ को उँची करना
ज़रूरी समझता हो,वहाँ ख़ामोश, अदबी और धीमा लहज़ा फनकार को नुकसान पहुँचाता है
और ऐसे मैं कई अच्छी सोचें दबकर रह जाती हैं एक नुकसान जो इस रवैये से पहुचता
है वो ये कि इससे कमज़ोर और साज़िशी ज़ह्नों को फलने फूलने का मौका मिल जाता है
अशोक मिज़ाज इस ख़राबे में इंसानियत और मोहब्बत का पैगाम लेकर आए हैं इंसानी
हमदर्दी और इंसानी बराबरी उनका ख्वाब है
अशोक अपनी कलाम की सदाक़तें के सबब मौजूदा हालत में
ना सिर्फ़ क़ोमी बल्कि आलमी सतह पर ये बात साबित करने मे कामयाब है कि यही आवाज़ आलमी
भाईचारे को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है

"मोहब्बत, अम्न, खुशहाली, ये हर इंसान की चाहत
ये हिन्दुस्तान की चाहत, ये पाकिस्तान की चाहत
ये सारी सरहदें बन जाएँगी पुल देखना इक दिन
पुकारेगी कभी इंसान को, इंसान की चाहत ........." अशोक मिज़ाज

" सुनसान हैं फ़ज़ाएं तो मौसम उदास है
निकले कहीं धुआँ तो हवा का पता चले "
अशोक मिज़ाज

"मिट्टी भी उठा लेते है टूटे हुए घर की
गिरते हुए लोगों को उठाने नहीं आते "
अशोक मिज़ाज

अशोक की शायरी में मोहब्बत और मासूमियत की जो एक लहर मिलती है,
उससे मुतास्सिर हुए बग़ैर नहीं रहा जा सकता.
उसके यहाँ ज़ब्त और दूसरों के एहतराम की जो फ़ज़ा फैली होती है
वो इंसान और हैवान में फ़र्क करने के लिए मददगार साबित होती है

" नित नये शेर मोहब्बत के सुनाता है मुझे,
ग़म तेरा थपकीयाँ दे दे के सुलाता है मुझे " अशोक मिज़ाज

" तेरे सुलूक नें जीना सीखा दिया लेकिन
तेरे बग़ैर ये जीना सज़ा में शामिल है " अशोक मिज़ाज

इस तरह बहुत से अश्आर की कहकशां है जिससे अशोक की शायरी सजी धजी है
अशोक की शायरी रोशन इंकानात ( संभावनाएँ ) की शायरी है
अभी उनका शेरी सफ़र ज़ारी है और मुझे यक़ीन है की अपनी मश्क़ और
तजुरबों को खूबसूरत और बेहतर तरीकों से पेश करने की महारत जब अपना जादू दिखाएगी तो
अशोक मिज़ाज ज़ियादा हसीन ज़ियादा खूबसूरत और ज़ियादा मैयारी शायरी लेकर दुनिया के सामने आएँगे
मेरी ख्वाहिश है की इंसानी दोस्ती और हमदर्दी में अशोक मिज़ाज की आँखों से च्चालका हुआ आँसू
सब को मोहब्बत करना और दुखी दिलों को देख कर आआँखें नाम करने का अंदाज़ सिखाए...

शुक्रिया के साथ पेश ए खिदमत है.

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