Rajiv Chaturvedi
"किस्म -किस्म के फूल खिले थे मेरी क्यारी में ,
धार लगाते थे तुम बैठे थे अपनी मजहब की आरी में
बांटो और काटो की संस्कृत में धार धरो कितनी
रसूल ,उसूल और त्रिसूल से खून बहाओ कितना भी
संस्कृतियाँ तो शान्त सृजन के संघर्षों की हैं तैयारी में ."----राजीव चतुर्वेदी
"किस्म -किस्म के फूल खिले थे मेरी क्यारी में ,
धार लगाते थे तुम बैठे थे अपनी मजहब की आरी में
बांटो और काटो की संस्कृत में धार धरो कितनी
रसूल ,उसूल और त्रिसूल से खून बहाओ कितना भी
संस्कृतियाँ तो शान्त सृजन के संघर्षों की हैं तैयारी में ."----राजीव चतुर्वेदी
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