मीराबाई ने इस पद में कहा है -
रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री।
होली खेल्यां स्याम संग रंग सूं भरी, री।।
उड़त गुलाल लाल बादला रो रंग लाल।
पिचकाँ उडावां रंग रंग री झरी, री।।
चोवा चन्दण अरगजा म्हा, केसर णो गागर भरी री।
मीरा दासी गिरधर नागर, चेरी चरण धरी री।।
इस पद में मीरा ने अपनी सखी को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि- हे सखी। मैंने अपने प्रियतम कृष्ण के साथ रंग से भरी, प्रेम के रंगों से सराबोर होली खेली। होली पर इतना गुलाल उड़ा कि जिसके कारण बादलों का रंग भी लाल हो गया। रंगों से भरी पिचकारियों से रंग की धाराएं बह चलीं। मीरा कहती हैं कि अपने प्रिय से होली खेलने के लिये मैंने मटकी में चोवा, चन्दन, अरगजा, केसर आदि भरकर रखे हुये हैं। मैं तो उन्हीं गिरधर नागर की दासी हूँ और उन्हीं के चरणों में मेरा सर्वस्व समर्पित है।
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