आपका-अख्तर खान

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03 मार्च 2013

आज फिर कई दिनों बाद

आज फिर
कई दिनों बाद
उन्होंने होले से
मेरे पास आकर
मुझ से मुस्कुरा कर कहा ..
कई दिन हुए
में सुकून से सो न सकी हूँ ...
मेने उसकी सूजी हुई
अलसाई नींद को तरसती
आँखों को देख कर
मेरा कुरता ऊपर उठा दिया
लहू लुहान पीठ मेरी
जख्मों से जहाँ लहू टपकता था ...
उसने जो ज़ख्म दिए थे
उन जख्मों को थोडा निहारा
मुस्कुराई और दोनों हाथों में
नमक मिर्च लेकर
मेरे जख्मों पर लगा दिया
मेरी तडपन मेरी सिसकियाँ मेरी चीख सुनकर
वोह बढ़े प्यार से बोली
चलो अब में चलती हूँ
मुझे सुकून मिल गया
अब में जरा चेन से सो सकूंगी
और घर जाकर इस मंजर को याद कर
वोह गहरी नींद में सो गयी ...
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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