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धर्ममें ३३ कोटि देवी-देवता हैं | ऐसेमें किस देवताके जपसे शीघ्र
आध्यात्मिक प्रगति संभव है, आज इस बिन्दुपर हम विचार करेंगे |
यदि हमने किसी संत या गुरुसे गुरुमंत्र लिया है तो उसका जप करना चाहिए और यदि नहीं लिया है तो गुरु ढूँढनेका प्रयत्न नहीं चाहिए, क्योंकि कलियुगमें ९८ प्रतिशत गुरु ढोंगी होते हैं और कोई अध्यात्मविद संत हैं या नहीं, यह हमें ज्ञात हो जाय, इसके लिए या तो हमारे पास सूक्ष्मका ज्ञान हो या साधनाका ठोस आधार हो, जो साधनाकी आरंभिक अवस्थामें हमें नहीं होता है
अतः गुरु बनानेके फेरमें पड़नेके स्थानपर, अध्यात्मशास्त्र अनुसार साधना करनेका प्रयास करना चाहिए और सनातन धर्ममें इसका अत्यंत सुन्दर विधान है | सभीको अपने कुलदेवताका जप करना चाहिए |
कुलदेवताकी व्युत्पत्ति और अर्थ देख लेते हैं | कुल, अर्थात मूल और मूलका संबंध मूलाधार चक्र, या कुण्डलिनी शक्तिसे होता है | कुल + देवता, अर्थात जिस देवताकी उपासनासे मूलाधार चक्र जागृत होता है, अर्थात कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है, अर्थात आध्यात्मिक उन्नति आरम्भ होती है, उन्हें कुलदेवता कहते हैं | कुलदेवताके तत्त्वमें सभी ३३ कोटि देवताके तत्त्व समाहित होते हैं | अतः कुलदेवताके जपसे उन तत्त्वकी ३०% तक वृद्धि हो जाती है और यह जप पूर्ण होनेपर, गुरुका हमारे जीवनमें स्वतः ही प्रवेश हो जाता है | यदि कुलदेवताका नाम पता हो, तो कुलदेवताके नामके आगे ‘श्री’ लगाएँ और तत्पश्चात देवताके नामके साथ चतुर्थीका प्रत्यय लगाएँ और अंतमें “नमः” लगाएँ | इस प्रकार कुलदेवताका जप करें, जैसे यदि कुलदेवता ‘गणेश’ हों, तो ‘श्री गणेशाय नमः’ और यदि कुलदेवी ‘भवानी’ हों, तो ‘श्री भवानी देव्यै नमः’, इस प्रकार जप करें | यदि कुलदेवताका नाम नहीं पता हो, तो ‘श्री कुलदेवतायै नमः’ जपें और अपने इष्टका स्वरूप अपने मनमें रखें |
जिनके लिए जीवनमें साधना प्रधान हो और सांसारिक जीवन गौण हो, अर्थात जिनका आध्यात्मिक स्तर ५०% से अधिक हो, ऐसे साधकको उच्च कोटिके देवता जैसे राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपतिमेंसे जो उनके आराध्य हों, उनका जप करना चाहिए |
वर्तमान कालमें ५०% साधारण व्यक्तियोंको और ७०% अच्छे साधकोंको अनिष्ट शक्तिका तीव्र कष्ट है | ऐसेमें सर्वप्रथम अनिष्ट शक्तिके कष्टके निवारणार्थ जप करें |
अनिष्ट शक्ति क्या होती है ?
ईश्वरने सृष्टिकी रचनाके साथ ही दो शक्तियों देव और असुरका निर्माण किया जिसमें एक है इष्टकारी शक्ति, कल्याणकारी शक्ति और दूसरा अनिष्ट शक्ति अर्थात विनाशकारी शक्ति | जब किसी दुर्जनकी मृत्यु हो जाए और उसका क्रिया-कर्म वैदिक रीतिसे न हुआ हो, या उसके कर्मानुसार उसे गति न मिले, तो वे भी अनिष्ट शक्तिके गुटमें चले जाते हैं | उसी प्रकार हमारे पूर्वजोंने पापकर्म किए हों, या उनकी कोई इच्छा अतृप्त रह गई हो और हम अतृप्त पितरोंकी सद्गतिके लिए योग्य साधना नहीं करते हों, तो वे भी अनिष्ट शक्तिके गुटमें चले जाते हैं और साधनाके अभावमें बलाढ्य आनिष्ट शक्तियां उन्हें सूक्ष्म जगतमें बंधक बना, उनसे बुरे कर्म करवाती हैं अतः उनसे भी कष्ट होता है |
वर्तमान समयमें धर्माचरणके अभावमें व्यष्टि (वैयक्तिक) एवं समष्टि (सामाजिक) जीवनमें अनिष्ट शक्तिका कष्ट बढ़ गया है और चारों ओर ‘त्राहिमां’ की स्थिति बन गयी है |
अनिष्ट शक्तिके कारण किस प्रकारके कष्ट हो सकते हैं?
अवसाद (डिप्रेशन), आत्म-हत्याके विचार आना, अत्यधिक क्रोध आना और उस आवेशमें अपना आपा पूर्ण रूपसे खो देना, मनमें सदैव वासनाके विचार आना, नींद न आना, अत्यधिक नींद आना, शरीरके किसी भागमें वेदना होना और औषधिद्वारा उस वेदनाका ठीक न हो पाना, मनका अत्यधिक अशांत रहना, व्यवसायमें सदैव हानि होना, परीक्षाके समय सदैव कुछ न कुछ अड़चन आना, घरमें सदैव कलह-क्लेश रहना, लगातार गर्भपात होना, बिना कारण आर्थिक हानि होना, रोगका वंशानुगत होना, व्यसनी होना, लगातार अपघात या दुर्घटना होते रहना, नौकरी या जीविकोपार्जनमें सदैव अड़चन आना, सामूहिक बलात्कार, समलैंगिकता, भयावह यौन रोग, यह सब अनिष्ट शक्तियोंके कारण होते हैं |
यदि किसीको अनिष्ट शक्तिका कष्ट हो तो आरम्भमें एक वर्षके लिए ‘श्रीगुरुदेव दत्त’ का जप अधिकसे अधिक करना चाहिए और उसके पश्चात ‘सात नामजपका प्रयोग’ कर, जिस नामजपसे कष्ट हो, उनका अखंड जप करना चाहिए | एक महीनेके पश्चात पुनः प्रयोग कर नए नामजपको ढूंढ कर निकालना चाहिए | ऐसे करनेसे उनके जीवनमें सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंद्वारा दिये जानेवाले कष्ट अति शीघ्र कम हो जाते हैं अन्यथा साधनाका व्यय, अनिष्ट शक्तिद्वारा दिए जा रहे कष्टपर मात करने हेतु हो जाता है और आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती |
‘सप्त देवताका नामजप प्रयोग’ कैसे कर सकते हैं, यह संक्षेपमें देख लेते हैं | स्नानकर या हाथ मुंह धोकर, स्वच्छ और पवित्र स्थानपर बैठ जाएँ और राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपति, इनके क्रमशः ‘श्री राम जय राम जय जय राम’, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, ‘ ॐ श्री दुर्गा देव्यै नमः’ , ‘ॐ नमः शिवाय’, ‘ॐ हं हनुमते नमः’, ‘ॐ श्री गुरुदेव दत्त’, ‘ॐ गं गणपतये नमः’ जपके समय किस जपसे सर्वाधिक कष्ट हो रहा है यह देखें | जिस जपसे सबसे अधिक कष्ट हो रहा हो, वह जप अगले एक महीनेके लिए करना चाहिए |
यदि जप करते समय तनिक भी कष्ट न हो तो जिस जपमें सबसे कम विचार आयें, वह जप करें | जप करते समय नींद आना, बुरे विचार आना, जप करनेका मन न करना, जी मितलाना, उबासियाँ आना, शरीरमें वेदना होना जैसे कष्ट हों तो समझें कि अनिष्ट शक्तिका कष्ट है | इन्हीं सभी सात जपको पांच-पांच मिनट करें और एक जप पांच मिनट करनेके पश्चात उस दौरान क्या हुआ, यह एक कॉपीमें लिख कर पुनः जप आरम्भ करनेसे पहले अगले उपास्य देवताको प्रार्थना करें | “हे भगवन, मेरे जीवनमें जो भी अनिष्ट शक्ति मेरे व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवनमें अड़चनें निर्माण कर रही हैं, उनपर मात पाने हेतु नामजपका प्रयोग कर रही/रहा हूँ | नामजपके प्रयोगमें सहायता करें और इससे पहले जो हमने जप किया, उसका प्रभाव इस जपके समय न हो ऐसी आप कृपा करें’’ | प्रत्येक महीने जपका प्रयोग क्यों करना चाहिए ? एक महीनेमें या तो वह अनिष्ट शक्ति उस जपका कोई तोड़ ढूंढ लेती है, या उसे मुक्ति मिलनेपर, कोई दूसरी अनिष्ट शक्ति हमें कष्ट देने लगती है | अतः जब तक अनिष्ट शक्तिके कष्ट कम न हो जाएँ, तब तक यह सात नामजपका प्रयोग करते रहना चाहिए |
उपर्युक्त बताए गए मुद्देका आधार हमारे श्रीगुरु परम पूज्य डॉ. जयंत बालाजी आठवलेद्वारा लिखे एवं सनातन संस्थाद्वारा प्रकाशित ग्रंथ “अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन’’ है |
यदि हमने किसी संत या गुरुसे गुरुमंत्र लिया है तो उसका जप करना चाहिए और यदि नहीं लिया है तो गुरु ढूँढनेका प्रयत्न नहीं चाहिए, क्योंकि कलियुगमें ९८ प्रतिशत गुरु ढोंगी होते हैं और कोई अध्यात्मविद संत हैं या नहीं, यह हमें ज्ञात हो जाय, इसके लिए या तो हमारे पास सूक्ष्मका ज्ञान हो या साधनाका ठोस आधार हो, जो साधनाकी आरंभिक अवस्थामें हमें नहीं होता है
अतः गुरु बनानेके फेरमें पड़नेके स्थानपर, अध्यात्मशास्त्र अनुसार साधना करनेका प्रयास करना चाहिए और सनातन धर्ममें इसका अत्यंत सुन्दर विधान है | सभीको अपने कुलदेवताका जप करना चाहिए |
कुलदेवताकी व्युत्पत्ति और अर्थ देख लेते हैं | कुल, अर्थात मूल और मूलका संबंध मूलाधार चक्र, या कुण्डलिनी शक्तिसे होता है | कुल + देवता, अर्थात जिस देवताकी उपासनासे मूलाधार चक्र जागृत होता है, अर्थात कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है, अर्थात आध्यात्मिक उन्नति आरम्भ होती है, उन्हें कुलदेवता कहते हैं | कुलदेवताके तत्त्वमें सभी ३३ कोटि देवताके तत्त्व समाहित होते हैं | अतः कुलदेवताके जपसे उन तत्त्वकी ३०% तक वृद्धि हो जाती है और यह जप पूर्ण होनेपर, गुरुका हमारे जीवनमें स्वतः ही प्रवेश हो जाता है | यदि कुलदेवताका नाम पता हो, तो कुलदेवताके नामके आगे ‘श्री’ लगाएँ और तत्पश्चात देवताके नामके साथ चतुर्थीका प्रत्यय लगाएँ और अंतमें “नमः” लगाएँ | इस प्रकार कुलदेवताका जप करें, जैसे यदि कुलदेवता ‘गणेश’ हों, तो ‘श्री गणेशाय नमः’ और यदि कुलदेवी ‘भवानी’ हों, तो ‘श्री भवानी देव्यै नमः’, इस प्रकार जप करें | यदि कुलदेवताका नाम नहीं पता हो, तो ‘श्री कुलदेवतायै नमः’ जपें और अपने इष्टका स्वरूप अपने मनमें रखें |
जिनके लिए जीवनमें साधना प्रधान हो और सांसारिक जीवन गौण हो, अर्थात जिनका आध्यात्मिक स्तर ५०% से अधिक हो, ऐसे साधकको उच्च कोटिके देवता जैसे राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपतिमेंसे जो उनके आराध्य हों, उनका जप करना चाहिए |
वर्तमान कालमें ५०% साधारण व्यक्तियोंको और ७०% अच्छे साधकोंको अनिष्ट शक्तिका तीव्र कष्ट है | ऐसेमें सर्वप्रथम अनिष्ट शक्तिके कष्टके निवारणार्थ जप करें |
अनिष्ट शक्ति क्या होती है ?
ईश्वरने सृष्टिकी रचनाके साथ ही दो शक्तियों देव और असुरका निर्माण किया जिसमें एक है इष्टकारी शक्ति, कल्याणकारी शक्ति और दूसरा अनिष्ट शक्ति अर्थात विनाशकारी शक्ति | जब किसी दुर्जनकी मृत्यु हो जाए और उसका क्रिया-कर्म वैदिक रीतिसे न हुआ हो, या उसके कर्मानुसार उसे गति न मिले, तो वे भी अनिष्ट शक्तिके गुटमें चले जाते हैं | उसी प्रकार हमारे पूर्वजोंने पापकर्म किए हों, या उनकी कोई इच्छा अतृप्त रह गई हो और हम अतृप्त पितरोंकी सद्गतिके लिए योग्य साधना नहीं करते हों, तो वे भी अनिष्ट शक्तिके गुटमें चले जाते हैं और साधनाके अभावमें बलाढ्य आनिष्ट शक्तियां उन्हें सूक्ष्म जगतमें बंधक बना, उनसे बुरे कर्म करवाती हैं अतः उनसे भी कष्ट होता है |
वर्तमान समयमें धर्माचरणके अभावमें व्यष्टि (वैयक्तिक) एवं समष्टि (सामाजिक) जीवनमें अनिष्ट शक्तिका कष्ट बढ़ गया है और चारों ओर ‘त्राहिमां’ की स्थिति बन गयी है |
अनिष्ट शक्तिके कारण किस प्रकारके कष्ट हो सकते हैं?
अवसाद (डिप्रेशन), आत्म-हत्याके विचार आना, अत्यधिक क्रोध आना और उस आवेशमें अपना आपा पूर्ण रूपसे खो देना, मनमें सदैव वासनाके विचार आना, नींद न आना, अत्यधिक नींद आना, शरीरके किसी भागमें वेदना होना और औषधिद्वारा उस वेदनाका ठीक न हो पाना, मनका अत्यधिक अशांत रहना, व्यवसायमें सदैव हानि होना, परीक्षाके समय सदैव कुछ न कुछ अड़चन आना, घरमें सदैव कलह-क्लेश रहना, लगातार गर्भपात होना, बिना कारण आर्थिक हानि होना, रोगका वंशानुगत होना, व्यसनी होना, लगातार अपघात या दुर्घटना होते रहना, नौकरी या जीविकोपार्जनमें सदैव अड़चन आना, सामूहिक बलात्कार, समलैंगिकता, भयावह यौन रोग, यह सब अनिष्ट शक्तियोंके कारण होते हैं |
यदि किसीको अनिष्ट शक्तिका कष्ट हो तो आरम्भमें एक वर्षके लिए ‘श्रीगुरुदेव दत्त’ का जप अधिकसे अधिक करना चाहिए और उसके पश्चात ‘सात नामजपका प्रयोग’ कर, जिस नामजपसे कष्ट हो, उनका अखंड जप करना चाहिए | एक महीनेके पश्चात पुनः प्रयोग कर नए नामजपको ढूंढ कर निकालना चाहिए | ऐसे करनेसे उनके जीवनमें सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंद्वारा दिये जानेवाले कष्ट अति शीघ्र कम हो जाते हैं अन्यथा साधनाका व्यय, अनिष्ट शक्तिद्वारा दिए जा रहे कष्टपर मात करने हेतु हो जाता है और आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती |
‘सप्त देवताका नामजप प्रयोग’ कैसे कर सकते हैं, यह संक्षेपमें देख लेते हैं | स्नानकर या हाथ मुंह धोकर, स्वच्छ और पवित्र स्थानपर बैठ जाएँ और राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपति, इनके क्रमशः ‘श्री राम जय राम जय जय राम’, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, ‘ ॐ श्री दुर्गा देव्यै नमः’ , ‘ॐ नमः शिवाय’, ‘ॐ हं हनुमते नमः’, ‘ॐ श्री गुरुदेव दत्त’, ‘ॐ गं गणपतये नमः’ जपके समय किस जपसे सर्वाधिक कष्ट हो रहा है यह देखें | जिस जपसे सबसे अधिक कष्ट हो रहा हो, वह जप अगले एक महीनेके लिए करना चाहिए |
यदि जप करते समय तनिक भी कष्ट न हो तो जिस जपमें सबसे कम विचार आयें, वह जप करें | जप करते समय नींद आना, बुरे विचार आना, जप करनेका मन न करना, जी मितलाना, उबासियाँ आना, शरीरमें वेदना होना जैसे कष्ट हों तो समझें कि अनिष्ट शक्तिका कष्ट है | इन्हीं सभी सात जपको पांच-पांच मिनट करें और एक जप पांच मिनट करनेके पश्चात उस दौरान क्या हुआ, यह एक कॉपीमें लिख कर पुनः जप आरम्भ करनेसे पहले अगले उपास्य देवताको प्रार्थना करें | “हे भगवन, मेरे जीवनमें जो भी अनिष्ट शक्ति मेरे व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवनमें अड़चनें निर्माण कर रही हैं, उनपर मात पाने हेतु नामजपका प्रयोग कर रही/रहा हूँ | नामजपके प्रयोगमें सहायता करें और इससे पहले जो हमने जप किया, उसका प्रभाव इस जपके समय न हो ऐसी आप कृपा करें’’ | प्रत्येक महीने जपका प्रयोग क्यों करना चाहिए ? एक महीनेमें या तो वह अनिष्ट शक्ति उस जपका कोई तोड़ ढूंढ लेती है, या उसे मुक्ति मिलनेपर, कोई दूसरी अनिष्ट शक्ति हमें कष्ट देने लगती है | अतः जब तक अनिष्ट शक्तिके कष्ट कम न हो जाएँ, तब तक यह सात नामजपका प्रयोग करते रहना चाहिए |
उपर्युक्त बताए गए मुद्देका आधार हमारे श्रीगुरु परम पूज्य डॉ. जयंत बालाजी आठवलेद्वारा लिखे एवं सनातन संस्थाद्वारा प्रकाशित ग्रंथ “अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन’’ है |
हम्म , बात तो ठीक है
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