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25 मार्च 2013

फागुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है

फागुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है । इसी के साथ होली उत्सव मनाने की शुरु‌आत होती है।
होलिका दहन की तैयारी भी यहाँ से आरंभ हो जाती है। इस पर्व को नवसंवत्सर का आगमन तथा वसंतागम के उपलक्ष्य में किया हु‌आ यज्ञ भी माना जाता है। वैदिक काल में इस होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। पुराणों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि जब भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से होली का प्रचलन हु‌आ।

सबसे ज्यादा प्रचलित हिरण्यकश्यप की कथा है, जिसमें वह अपने पुत्र प्रहलाद को जलाने के लि‌ए बहन होलिका को बुलाता है। जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठती हैं तो वह जल जाती है और भक्त प्रहलाद जीवित रह जाता है। तब से होली का यह त्योहार मनाया जाने लगा है।

परंपरा के अनुसार होलिका में कच्चा आम, नारियल, घर में बने पकवान का अर्पण करना चाहिए। रोली-चंदन से पूजन करने के बाद परिक्रमा करनी चाहिए। होलिका दहन के बाद नयी फसल की गेहूं-जौ की नई बालियां, मूंग, चना आदि भूनना चाहिए। यदि मन में किसी के प्रति बैर हो तो उसे वहीं त्याग कर गले मिलना चाहिए।
होली के रंग-बिरंगे त्यौहार की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें |

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