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05 मार्च 2013

यह कमबख्त मेरा जिस्म मेरे जिस्म के यह आजा

यह कमबख्त मेरा जिस्म
मेरे जिस्म के यह आजा
मुझ से तेरी तरह ही बेवफाई करते है ..
मेरे जिस्म और मेरे जिस्म के हर अंग हर आजा को पता है
हां पता है के तुम्हे मुझ से नफरत है
फिर भी यह बदन यह अंग अंग
तुझ से नफरत करने की जगह
कमबख्त न जाने क्यूँ तुझसे हाँ तुझसे प्यार करते है
मेरे जिसम में मेरे सीने में
जो दिल धड़कता है कम्भख्त बेवफा है
सिर्फ और सिर्फ तेरे लियें धडकता है
मेरी आँखें कमबख्त तुझे सिर्फ तुझे देखें के लियें तरसती है
मेरा दिमाग सिर्फ और सिर्फ तेरे बारे में सोचता है
मेरे पैर सिर्फ और सिर्फ तुझ तक पहुंचने के लियें तड़पते है
मेरी उंगलियाँ कमबख्त तेरे गेसू सुलझाने के लियें तरसती है
इसे कहते है बेवफा से प्यार
कमबख्त नफरत करने वालों के लियें तड़पते है
नफरत करने वालों के लियें तरसते है
या खुदा यह क्या अज़ाब है यह क्या अज़ाब है .............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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