..जिंदगी कहीं दूर खो सी गयी थी
कहीं एक लहर जैसे थम सी गयी थी
कुछ स्वप्न पलकों में छिप से गए थे
दिन अजनबी से लगने लगने लगे थे
यूँ मिल गए कुछ ख़ुशी के खजाने
खुली वादियों में गूंजे कुछ तराने
अपनी ही धुन में अब उड़ने लगे हैं
ये दिन बड़े अपने से लगने लगे हैं.....सुप्रभात......!!
..जिंदगी कहीं दूर खो सी गयी थी
कहीं एक लहर जैसे थम सी गयी थी
कुछ स्वप्न पलकों में छिप से गए थे
दिन अजनबी से लगने लगने लगे थे
यूँ मिल गए कुछ ख़ुशी के खजाने
खुली वादियों में गूंजे कुछ तराने
अपनी ही धुन में अब उड़ने लगे हैं
ये दिन बड़े अपने से लगने लगे हैं.....सुप्रभात......!!
कहीं एक लहर जैसे थम सी गयी थी
कुछ स्वप्न पलकों में छिप से गए थे
दिन अजनबी से लगने लगने लगे थे
यूँ मिल गए कुछ ख़ुशी के खजाने
खुली वादियों में गूंजे कुछ तराने
अपनी ही धुन में अब उड़ने लगे हैं
ये दिन बड़े अपने से लगने लगे हैं.....सुप्रभात......!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)