आपका-अख्तर खान

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15 मार्च 2013

हवाएं रुक गई थी


कितने भारी लम्हे थे वो
जब तुमने
अलविदा कहा था

हवाएं रुक गई थी
सूरज ढलता हुआ
कुछ देर को ठहर सा गया था

समंदर की वो लहर
बेसाख्ता वहीँ रुक गई थी

मेरी साँसों की आवाज
मेरा दिल सुन पा रहा था

कितने भारी लम्हे थे
जब तुमने
नाशाद
अलविदा कहा था
= नरेश नाशाद

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