राजस्थान दिवस आज: 25 मार्च 1948 को कोटा में हुआ था राजस्थान का
गठन, कोटा बना था पहली राजधानी, राजधानी बनने के बावजूद विकास में दूसरे
शहरों से रहा पीछे, राजनीतिक प्रबलता के बावजूद प्रदेश स्तर का एक भी
कार्यालय नहीं, विमान सेवा व हाईकोर्ट बैंच के लिए करना पड़ रहा है संघर्ष
कोटा.संयुक्त राजस्थान के गठन के बाद पहली राजधानी बनने के
बावजूद कोटा विकास की दौड़ में अन्य शहरों से पिछड़ा गया है। यहां हाईकोर्ट
बैंच व विमानसेवा नहीं है, जबकि अन्य शहरों में एक नहीं दो से तीन सेवाएं
ऐसी हैं, जो प्रदेश स्तर की है। प्रदेश की राजनीति में भी कोटा का वर्चस्व
रहा है, लेकिन विकास में यह क्षेत्र हमेशा उपेक्षित रहा।
दरबार हाल में हुआ गठन
महाराव भीमसिंह (द्वितीय) ने आसपास की रियासतों को मिलाकर संयुक्त
राजस्थान का नामकरण किया। कोटा के उम्मेदभवन पैलेस स्थित दरबार हाल में
इसका गठन किया गया। तब सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रतिनिधि के रूप में वीएस
गाडगिल ने इसमें भाग लिया। 25 मार्च 1948 को हुए इस कार्यक्रम में कोटा को
संयुक्त राजस्थान की राजधानी मानते हुए भीलवाड़ा के गोकुल लाल असावा को
प्रधानमंत्री तथा महाराव उम्मेदसिंह (द्वितीय) को राजप्रमुख बनाया गया।
हालांकि बाद में उदयपुर व फिर 30 मार्च 1949 में जयपुर को प्रदेश की
राजधानी घोषित किया गया। कोटा को राजधानी बनाने के दौरान ही वर्तमान
पीडब्ल्यूडी ऑफिस को महकमा खास बनाया गया था।
8 मंत्री और एक मुख्यमंत्री दिया हाड़ौती ने
प्रदेश की राजनीति में कोटा का प्रमुख स्थान रहा है। यहां से बृजसुंदर
शर्मा, अभिन्नहरि, रिखबचंद धारीवाल, रामकिशन वर्मा, शांति धारीवाल,
रघुवीरसिंह कौशल, ललित किशोर चतुर्वेदी, भरतसिंह व वसुंधरा राजे आदि प्रमुख
मंत्री व मुख्यमंत्री रहे, लेकिन कोटा को विकास के नाम पर कुछ नहीं मिला।
इनमें प्रो.ललित किशोर चतुर्वेदी व वसुंधरा राजे का वर्चस्व प्रदेश की
राजनीति में रहा है, लेकिन कोटा को विकास के नाम पर प्रदेश स्तर का कोई
महकमा नहीं मिला। अभी आरटीयू (राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी) मिली हुई है,
लेकिन अब इसको भी विभाजित कर दिया है।
जोधपुर, बीकानेर, अजमेर हैं हमसे आगे
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के क्षेत्र जोधपुर में हाईकोर्ट, नेशनल
यूनिवर्सिटी, आईआईटी, निफ्ड व आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय हैं। बीकानेर में
शिक्षा विभाग व वेटनरी यूनिवर्सिटी के अलावा पुरा अभिलेखाकार का हैडक्वाटर
है। अजमेर में रेवेन्यू बोर्ड, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, आरपीएससी हैं।
उदयपुर में भी आबकारी, देवस्थान विभाग, माइंस एंड जूलॉजी, जनजाति आयुक्तव
यूनिवर्सिटी हैं। मौजूदा राजधानी जयपुर तो विकास की दौड़ में काफी आगे निकल
गया है। यहां अब मेट्रो ट्रेन चलने वाली है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण पिछड़े हम
इतिहासकार जगतनारायण के अनुसार नेताओं की इच्छाशक्ति में कमी का
खामियाजा कोटा भुगत रहा है। यहां विमानसेवा व हाईकोर्ट बैंच के लिए लोग लड़
रहे हैं। पूरे प्रदेश को बिजली व नहरों का पानी दे रहे हैं। यहां कारखाने
तो खूब लगे, लेकिन वे शहर के विकास में हिस्सेदारी नहीं दे रहे। नेता ही
नहीं चाहते कि यहां प्रदेश स्तरीय सेवाएं हों, इसलिए आज भी शहर पिछड़ रहा
है। यदि महाराव भीमसिंह द्वितीय राजस्थान के निर्माण की पहल नहीं करते, तो
इसका निर्माण नहीं होता।
ये तो मिलना ही चाहिए था
'लोकल ट्रांसपोर्ट के सिटी बसें। ञ्च इंडस्ट्रियल डवलपमेंट के लिए
सेज। ञ्चसालों से सूने पड़े एयरपोर्ट पर एयर सर्विस। ञ्च पुलिस में
कमिश्नरेट प्रणाली।'
हाईकोर्ट बैंच और रेवेन्यू की डबल बैंच।
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