आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

13 मार्च 2013

सहरा नहीं था वो अगर दरिया भी नहीं था,

सहरा नहीं था वो अगर दरिया भी नहीं था,
जैसा कहा था आपने वैसा भी नहीं था.

हम उस जगह भी उम्र को आये गुज़ार के,
मुमकिन जहाँ गुज़ारना लम्हा भी नहीं था.

उसने तमाम उम्र मुखोटों में काट ली,
चेहरा तो उसके पास में खुद का भी नहीं था.

मरहम कहा था उसने मुझे जाने किस लिए,
मैंने तो उसके ज़ख़्म को छुआ भी नहीं था.

कैसे करूँ यक़ीन वो मेरा नहीं रहा,
लेकिन ये मेरी आँख का धोका भी नहीं था.

उनमें भी ग़ज़ल सुनने की तहज़ीब नहीं थी,
फिर ख़ास अपना दोस्तों लहज़ा भी नहीं था.

जो साथ मेरे थी तो बुजुर्गों की दुआ थी,
वरना तो साथ जिस्म का साया भी नहीं था.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...