सहरा नहीं था वो अगर दरिया भी नहीं था,
जैसा कहा था आपने वैसा भी नहीं था.
हम उस जगह भी उम्र को आये गुज़ार के,
मुमकिन जहाँ गुज़ारना लम्हा भी नहीं था.
उसने तमाम उम्र मुखोटों में काट ली,
चेहरा तो उसके पास में खुद का भी नहीं था.
मरहम कहा था उसने मुझे जाने किस लिए,
मैंने तो उसके ज़ख़्म को छुआ भी नहीं था.
कैसे करूँ यक़ीन वो मेरा नहीं रहा,
लेकिन ये मेरी आँख का धोका भी नहीं था.
उनमें भी ग़ज़ल सुनने की तहज़ीब नहीं थी,
फिर ख़ास अपना दोस्तों लहज़ा भी नहीं था.
जो साथ मेरे थी तो बुजुर्गों की दुआ थी,
वरना तो साथ जिस्म का साया भी नहीं था.
जैसा कहा था आपने वैसा भी नहीं था.
हम उस जगह भी उम्र को आये गुज़ार के,
मुमकिन जहाँ गुज़ारना लम्हा भी नहीं था.
उसने तमाम उम्र मुखोटों में काट ली,
चेहरा तो उसके पास में खुद का भी नहीं था.
मरहम कहा था उसने मुझे जाने किस लिए,
मैंने तो उसके ज़ख़्म को छुआ भी नहीं था.
कैसे करूँ यक़ीन वो मेरा नहीं रहा,
लेकिन ये मेरी आँख का धोका भी नहीं था.
उनमें भी ग़ज़ल सुनने की तहज़ीब नहीं थी,
फिर ख़ास अपना दोस्तों लहज़ा भी नहीं था.
जो साथ मेरे थी तो बुजुर्गों की दुआ थी,
वरना तो साथ जिस्म का साया भी नहीं था.
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