इन दिनों में कई स्थानों पर अंतिम संस्कार करने से पहले शांति कार्य भी किए जाते हैं। इसका पौराणिक कारण यह है कि प्रहलाद को भस्म करने के लिए फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से तैयारी शुरू कर दी गई थी। उसके पिता हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रहलाद को जीवित जलाने का षडयंत्र रचा था।
प्रहलाद विष्णु भक्त था और हिरण्यकशिपु उसे विष्णु की बजाय खुद को भगवान मानने के लिए जोर डाल रहा था। प्रहलाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे जिंदा जलाने के लिए होलिका को कहा। होलिका को यह वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती। इससे जनमानस में आक्रोश के साथ ही भय व शोक की लहर भी छा गई थी। इसलिए सभी शुभ कार्यों पर रोक लगना स्वाभाविक था।
कैसे करें पूजन...
प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने और उससे छुटकारा पाने के लिए इन दिनों में विष्णु के साथ- साथ नृसिंह स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
इसी प्रकार अपने आराध्य देवों के चरणों में निम्नानुसार रंग व पूजा सामग्री अर्पित करना चाहिए। जैसे यदि सूर्य के कारण कोई निर्बलता आ रही है तो सूर्य को कुमकुम अर्पित करें।
चंद्रमा के लिए अबीर, मंगल के लिए लाल चंदन या सिंदूर, बुध के लिए हरा रंग या मेहंदी, बृहस्पति के लिए केशर, हल्दी पावडर, शुक्र के लिए सफेद चंदन, मक्खन व मिश्री, शनि के लिए नीला रंग और राहू-केतु के लिए पंच गव्य अथवा गोबर गोमूत्र के साथ काले तिल अर्पण करने चाहिए।
प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने और उससे छुटकारा पाने के लिए इन दिनों में विष्णु के साथ- साथ नृसिंह स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
इसी प्रकार अपने आराध्य देवों के चरणों में निम्नानुसार रंग व पूजा सामग्री अर्पित करना चाहिए। जैसे यदि सूर्य के कारण कोई निर्बलता आ रही है तो सूर्य को कुमकुम अर्पित करें।
चंद्रमा के लिए अबीर, मंगल के लिए लाल चंदन या सिंदूर, बुध के लिए हरा रंग या मेहंदी, बृहस्पति के लिए केशर, हल्दी पावडर, शुक्र के लिए सफेद चंदन, मक्खन व मिश्री, शनि के लिए नीला रंग और राहू-केतु के लिए पंच गव्य अथवा गोबर गोमूत्र के साथ काले तिल अर्पण करने चाहिए।
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