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19 फ़रवरी 2013

सरकारी डिग्री फर्जी?


degree
एम अफसर खान सागर
शिक्षा किसी भी समुदाय के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। आज मुसलमानों के पिछड़ेपन की प्रमुख वजह शिक्षा की कमी है। मुसलमानों के शैक्षिक, सामाजिक व आर्थिक हालात को सुधारने के लिए केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा तरह-तरह के प्रयास किये जा रहे हैं मगर सच्चाई है कि ये प्रयास इनके हालात सुधारने में नाकाफी साबित हुए हैं। यही वजह है कि आजादी के साठ साल से ज्यादा का अरसा गुजर जाने के बाद भी तकरीबन पच्चीस करोड़ की आबादी वाला यह तबका फटेहाली, जेहालत व गुरबदत भरी जिन्दगी जीने पर मजबूर है।
मुस्लिम समुदाय के शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए केन्द्र सरकार ने मदरसों में आधुनिकीकरण योजना चलाया जिसके तहत मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ आधुनिक विषयों अंग्रेजी, गणित व विज्ञान की शिक्षा छात्रों को दिया जाने लगा ताकि मदरसे से निकलने वाले छात्र पिछड़ने न पावें। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों में तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था के लिए मिनी आई. टी. आई. का महत्वाकांक्षी योजना लाया गया ताकि बदलते हालात के साथ मदरसा छात्रों को भी तकनीकन शिक्षा मिले और वे समय के साथ कदम मिला कर चल सकें। लेकिन मदरसा मिनी आई. टी. आई. अपने मकसद में तो फेल हो ही रहा है साथ में यहां से पास हो कर भविष्य की तलाश में निकलने वाले छात्र भी अपने मकसद में नाकाम हो रहे हैं। मदरसा मिनी आई. टी. आई. द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र को न तो केन्द्र सरकार ही मान्य कर रही है, न ही प्राइवेट संस्थायें और न ही उत्तर प्रदेश सरकार जो इसे चला रही है। सिर्फ कागज का पुलिन्दा मात्र हैं मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र। या यूं कह लें कि सरकारी डिग्री फर्जी साबित हो रही है!
Building_Of_Madarsa_Misbahul_uloom_Dhanapurसन् 2002-2003 में तत्कालीन बसपा सरकार ने उत्तर प्रदेश के 50 मदरसों में मदरसा मिनी आई. टी. आई. खोलने का निर्णय लिया। जिसे सन् 2005 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने 140 मदरसों में लागू किया। मदरसा मिनी आई. टी. आई. के संचालन की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण एंवं वक्फ विभाग को मिला, जिसने इसके संचालन हेतु उत्तर प्रदेश मदरसा वोकेशनल ट्रेनिंग (UPMVT) की स्थापना की। सरकारी गाइड लाइन के मुताबिक मदरसा मिनी आई. टी. आई. के 45 ट्रेडों में से एक मदरसे को सिर्फ तीन ट्रेड चलाने की अनुमति होगी। लगातार सफल संचालन के बाद मदरसों द्वारा रजिस्टार उत्तर प्रदेश मदरसा वोकेशनल ट्रेनिंग के अनुमति से ट्रेड बढ़वाया जा सकता है। सन् 2005 में मदरसा मिनी आई. टी. आई. की स्थापना के लिए चन्दौली जनपद में एकमात्र धानापुर स्थित मदरसा मिस्बाहुल उलूम को दो लाख चार हजार रूपये क्रमशः कम्प्यूटर, वेल्डर, विधुत व गैस तथा सिलाई एवं कटाई ट्रेडों को चलाने के लिए मिला। मदरसों को यह निर्देश दिया गया कि प्रति ट्रेड 16 छात्रों के हिसाब से कुल 48 छात्रों का एडमिशन हो तथा परीक्षा में 60 प्रतिशत से ज्यादा रिजल्ट आने पर पूरे अनुदान का 10 प्रतिशत मेंटनेंस खर्च के रूप में मदरसों को प्रति वर्ष दिया जाएगा। मदरसे में मदरसा मिनी आई. टी. आई. का अलग डिविजन स्थापित कर उसके संचालन के लिए तीन अनुदेशक/शिक्षक, एक क्लर्क सह स्टोर कीपर व एक परिचर की नियुक्त हुए। तीनों अनुदेशकों में से एक को मुख्य अनुदेशक बनाकर उसको मदरसा मिनी आई. टी. आई. का पूरा प्रभार सौंपा गया। शैक्षणिक सत्र जुलाई-अगस्त में प्रारम्भ होकर सितम्बर-अक्तूबर तक चलता है, परीक्षा व परिणाम नबम्बर तक घोषित किया जाता है।
Silai_Katai_LAB_of_Mini_ITIउत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित मदरसा मिनी आई. टी. आई. से पूरे प्रदेश में प्रतिवर्ष तकरीबन छः हजार छात्र उत्तीर्ण होकर निकलते हैं मगर दुभाग्य की उनकी डिगीयां सिर्फ उनके दिलों को तसल्ली देती हैं न की रोजगार। क्योंकि राज्य सरकार जो इसे स्वयं संचालित करता है वह खुद इसे अपने यहां नौकरी की खातिर मान्य नहीं करता, ऐसे में केन्द्र व अन्य सरकारों का क्या दोष? मदरसा मिनी आई. टी. आई. पास अलपसंख्यक युवक सरकारी तो दूर प्राइवेट कम्पनीयों में भी नौकरी के लायक नहीं। जबकि स्थापना के वक्त इसका मकसद अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मदरसों में पढ़ने वाले युवकों को रोजगार से जोड़ना था। गौर फरमाने लायक बात यह है कि सिलैबस व प्रक्षिण एन. सी. भी. टी. या एस. सी. भी. टी. के समान होने के बावजूद मदरसा मिनी आई. टी. आई. को इन संस्थानों से मान्यता दिलाने में सरकार नाकाम है या अल्पसंख्को के साथ सियासी साजिश किया जा रहा है!
मदरसा मिनी आई. टी. आई. की डिग्री लेकर धानापुर-चन्दौली निवासी बेरोजगार युवक मोहसीन खां 22 वर्ष जब गुडगांव में नौकरी बास्ते एक प्राइवेट कम्पनी में बेल्डर पद के लिए आवेदन करता है तो उसके मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र को फर्जी कह कर उसका मजाक उड़ाया जाता है। प्राइवेट कम्पनी का नियोक्ता हंसते हुए कहता है कि आई. टी. आई. तो सुना था मगर मदसरा मिनी आई. टी. आई. कहां से पैदा हो गया। मैं इसको कैसे सही मानूं इसपर तो एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. का मुहर है ही नहीं। उस डिग्री और पढ़ाई से क्या फायदा जो व्यक्ति को तमाशा बना दे। मु0 आरिफ खां 24 वर्ष बताता है कि जब मैं दिल्ली में कम्प्यूटर आपरेटर पद के लिए आवेदन किया तो मुझे मेरे प्रमाण पत्र के सही न होने के आधार पर रिजेक्ट कर दिया गया। शहीद अबरार 28 बताता है कि मैने कम्प्यूटर में मिनी आई टी. आई करने के बाद नौकरी के लिए प्रयास किसा मगर कामयाबी नहीं मिली। प्रमाण पत्र फर्जी कहकर हटा दिया जाता। अब साइबर कैफे चला रहा हूं, सरकार को चाहिए कि मदरसा से निकले वाले छात्रों को स्वरोजगार के लिए सरकारी अनुदान उपलब्ध कराये। मैंने कोशिश किया मगर कामयाब नहीं हो पाया सरकारी अनुदान पाने में। यह तो चन्द उदाहरण भर है।
अल्पसंख्यकों को रोजगार मुहैया कराने का कागजी फरमान मुसलमानों के कल्याण की खातिर है या सियासी दलों के खुद के कलयाण का शिगूफा? शायद यही सोच कर तसल्ली कर लेते हैं मदरसा मिनी आई. टी. आई. के छात्र कि सरकार ने दोयम दर्जे का ही सही आई. टी. आई. के लायक तो समझा। आखिर क्या वजह है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. के प्रमाण पत्र व येाग्यता को अमान्य करार दे दिया जा रहा है? तौकीरअहमद, मुख्य अनुदेशक, मदरसा मिनी आई. टी. आई., मदरसा मिस्बाहुल उलूम, धानापुर-चन्दोली बताते हैं कि ‘‘आई. टी. आई. के वही प्रमाण पत्र मान्य होते हैं, जिनको एन. सी. वी. टी. ‘नेशनल काउंसिल फार वोकेशलन ट्रेनिंग’ या एस. सी. वी. टी. ‘स्टेट काउंसिल फार वोकेशलन ट्रेनिंग’ मान्यता देता है। लेकिन मदरसा मिनी आई. टी. आई. का इन दोनों संस्थाओं में से किसी की मान्यता नहीं है जबकि सिलैबस एन. सी. वी. टी. का पढ़ाया जाता है।’’ यह तो अल्पसंख्यकों को लालीपाप ही थमाया गया है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. नौकरी नहीं डिग्री देगा, जिसको लेकर ये छात्र खुशफहती में रहेंगे। इस बाबत उत्तर प्रदेश मदरसा वोकेशनल ट्रेनिंग के निदेशक जावेदअसलम टेलीफोनिक बातचीत में बताते हैं कि ‘‘मदरसा मिनी आई. टी. आई. की स्थापना सिर्फ मदरसा छात्रों को तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराकर स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षित करना है। रही बात एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. से मान्यता दिलाने की तो इसके लिए मदरसों को स्वयं पहल करना होगा है।’’ सरकार सवरोजगार का हवाला देकर अपने दायितवों से मुक्त हो जा रही है जबकि प्रत्येक वर्ष हजारों छात्र नौकरी के आस में यह प्रमाण पत्र हासिल कर रहे हैं। यह सरकार की दोहरी नीति नहीं तो क्या है कि एन. सी. वी. टी. का सिलैबस पढ़ कर भी मदरसा छात्र सरकारी नौकरी के काबिल नहीं है?
Computer_lab_madarsa_mini_itiआखिर क्या वजह है कि मदरसा मिनी आई. टी. आई. का लेबल लगाकर मदरसों के छात्रों को सरकारी नौकरी से रोका जा रहा है? अगर इस प्रशिक्षण के बाद भी वे काबिल नही हो पा रहे हैं तो सरकार क्यों इस तरह के पाठ्यक्रम चला रही है? हर साल करोड़ों का सरकारी धन क्यों बेमकसद सरकार पानी में बहा रही है? क्यों नही मदरसा मिनी आई. टी. आई. को एन. सी. वी. टी. या एस. सी. वी. टी. से मानयता दिलाया जा रही है? अगर सरकार स्वरोजगार के लिए ही इसको संचालित किया है तो यहां से उत्तीर्ण होकर निकलने वाले छात्रों को सरकारी अनुदान की व्यवस्था करायी जाए। तमाम सवाल हैं जिसका जवाब सरकार देने में असमर्थ है। एक अच्छे मकसद का नतीजा भी अच्छा हो ताकि मदरसों व मदरसा के छात्रों को एक दिशा प्राप्त हो सके। राष्ट्र का विकास तभी होगा जब हर समुदाय, हर व्यक्ति विकास की धारा में समान रूप से चलेगा। अब देखना है कि अल्पसंख्यक हितों की बात करने वाली प्रदेश की सपा सरकार व केन्द्र की सरकार इस समुदाय के तकनीकि लातीम को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठाती है।  बस जरूरत है सार्थक पहल की। जिसके लिए इन सरकारों को सियासी मुलम्मेबाजी से उपर उठ कर सोचने की जरूरत है। वर्ना वोट की सियासत में फंस कर सरकार की एक बेहतर सोच परवान चढ़ने की बजाय सिर्फ ढकोचला भर रह जायेगी।
md_afsar_khanउत्तर प्रदेश चन्दौली के रहनेवाले एम. अफसर खान सागर ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में एमए किया है. 2007 से पत्रकारिता में है. विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लेखन के साथ ही हिन्दी जर्नलिस्ट एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश के संयोजक हैं।

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