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17 फ़रवरी 2013

शिव ने किया तांडव, विष्णु ने घुमाया चक्र और टुकड़े -टुकड़े हो गया सती का शरीर!

 

 

राजपूतों के गौरवशाली इतिहास को समेटे राजस्थान पर्यटन के साथ-साथ कई प्राचीन धार्मिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है।यहां प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक स्थान है सुंधामाता का मंदिर।श्रृद्धालुओं की विशेष आस्था का केंद्र यह मंदिर जालोर जिले में जिला मुख्यालय से 105 किमी दूर रानीवाड़ा तहसील में मालवाडा और जसवंतपुरा के बीच स्थित है। नवरात्री में इस मंदिर में देश-भर के श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है।अरावली की पहाड़ियों में धरातल से 1220 मी की ऊंचाई पर एक प्राचीन गुफा में माँ शक्ति अघ्टेश्वरी देवी के रूप में विराजमान हैं।
 माता का मंदिर सुंधा पहाड़ पर स्थित होने के कारण देवी को सुंधामाता के नाम से जाना जाता है।माता के इस मंदिर में सिर्फ देवी के सिर की ही पूजा की जाती है।इस कारण चामुंडा माता के इस धाम को अघ्टेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है।इस सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है।
 कथा के अनुसार एक समय दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमे अपने दामाद अर्थात भगवान शंकर को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया,जब माता सती को इस बात की खबर लगी तो वे आगबबुला हो गईं और दक्ष प्रजापति द्वारा किये जा रहे उस यज्ञ की वेदी में कूदकर आत्मदाह कर लिया।
वृतांत का पता चलते ही भगवान शिव भी यज्ञ शाला में पहुंच गए और माता सती के जले हुए शरीर को उठाकर तांडव नृत्य करने लगे।
 

 


 

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