दोस्तों आज आपकी मुलाक़ात वकालत के प्रति सम्पूर्ण समर्पित एडवोकेट भाई विवेक नन्दवाना से परिचित करवाते है ...भाई विवेक जी राजस्थान के कोटा शहर में पले बढे और कोटा में ही इन जनाब ने तालीम और तरबियत हांसिल की .....शेक्षणिक काल में इन्हें साहित्य से लगाव के कारण लिखने खासकर आलेख और कविताएँ लिखने का शोक भी लगा था जो आज भी बरकरार है ...विवेक जी ने अपना जरिया ऐ माश यानी रोज़गार वकालत को बनाया लेकिन वकालत के व्यवसाय में इन्होने मर्यादित आचरण रखकर एक नया उदाहरण पेश किया है ..जूनियर शिप के बाद जब से आप खुद स्वतंत्र वकालत करने लगे है इन्होने वकालत के कार्य में कोई फाउल गेम नहीं किया ..नियमित अदालतों में निर्धारित समय पर उपस्थिति ....रोज़ साडे दस बजे अदालत आना और पांच बजे घर जाना ..अदालत में सभी से प्रेमभाव और मधुर वाणी से चलते चलते हाई हलो करना और सिर्फ और सिर्फ खुद के वकालत के काम में लग जान झुण्ड में बैठकर फ़ालतू गपशप करते इन्हें किसी ने नहीं देखा ..वकालत में अदालतों में मर्यादा में रहे ..ना चाय की दूकान पर न पान की दुकान पर ना किसी फ़ालतू सियासत या कामकाज में इन्होने खुद को लगाया कुल मिलाकर विवेक जी ने अपने विवेक को फुल टाइम वकालत से जोड़े रखा इन्होने सोचा तो कानून और वकालत के लियें इन्होने पढ़ा तो कानून पढ़ा ..इन्होने जिया तो वकालत का जीवन जिया ..कभी किसी विवाद में हिस्सा नहीं लिया ना किसी विवाद का यह कारन बने .. बीस वर्षों की वकालत में इन्होने कभी किसी के प्रति दुराग्रह रखते हुए नहीं देखा और इस कार्यकाल में अदालत में इन्हें कभी किसी ने बिना युनिफोर्म के नहीं देखा ...रास्ते में भी दो पहिया वाहन पर चलते वक्त आप हमेशा हेलमेट का इस्तेमाल करते है .विवेक जी अदालत परिसर में तो खुद को एक सक्रिय और कामयाब के रूप में स्थापित कर एक उदाहरण पेश किया ही है लेकिन एक वकील को दफ्तर में केसे जीवन जिन चाहिए उसका भी उदाहरण पेश किया है वकालत के दफ्तर में नियमित बेठना ..गपशप में वक्त बर्बाद करने के स्थान पर विवेक जी ने अपने विवेक को कानून की किताबें पढने ..नए कानून तलाशने और पक्षकारों से उनकी समस्या सुनकर उनकी बहतर पेरवी के लियें लगाते है और विवेक जी वकालत के सिद्धांत को पूरा निभाते है इनकी कोई राय मुफ्त में नहीं होती है पक्षकार को अगर कोई राय चाहिए तो यह अनाव्शयक रूप से बिना किसी प्रतिफल के किसी को कोई राय देना मुनासिब नहीं समझते है वकालत का सिद्धांत भी यही है बिना मांगे ..बिना फ़ाइल देखे ..बिना पूरी बात सुने और बिना प्रतिफल लिए किसी पक्षकार को कोई राय नहीं दी जाए और खुद को अपडेट रखें खुद को युनिफोर्म में रखे वक्त पर अदालत परिसर में उपस्थित हों और अदालतों में तुरंत आवाज़ पढ़ते ही पहुंच कर अपने मुकदमे की पेरवी कर पक्षकार को न्याय दिलवाएं .वाजिब फीस लें और अपने अलफ़ाज़ अपनी एनर्जी अनावश्यक कामों में बर्बाद नहीं करें ..भाई विवेक नन्दवाना एडवोकेट वकालत की कसोटी पर तो खरे उतारते ही है ..साथ ही इनके अपने सिद्धांतों और म्रदुल निर्विवाद स्वभाव के चलते यह सबके चहेते भी है और लिखें के शोक ने इन्हें बहतरीन रचनाएँ तो लिखने को मजबूर कर कामयाबी दी ही है साथ ही कानून की जानकारी के कारन यह कानूनी लेख लिखकर जनता में विधिक साक्षरता का काम भी कर रहे है ऐसे अभिभाषक भाई विवेक नन्दवाना को सलाम .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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