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10 फ़रवरी 2013

गिटार पर गजल गाने वाले अफजल की जिंदगी का सच, जानिए


गिटार पर गजल गाने वाले अफजल की जिंदगी का सच, जानिए
नई दिल्ली. 'मिनी लंदन' कहे जाने वाले कश्मीर के सोपोर कस्बे से कुछ किलोमीटर पहले झेलम नदी के किनारे शीर जागीर गांव में अफजल गुरु का जन्म हुआ था और उसकी परवरिश भी इसी गांव में हुई थी। गांव तक पहुंचने के लिए सेना के एक शिविर से होकर गुजरना पड़ता है और यह रास्ता कच्चा है।
 
 
शीर जागीर और उसके आसपास के गांवों में सेब के सैकड़ों बागीचें हैं। इसी गांव में अफजल का दो मंजिला घर है, जिसके आगे लॉन भी है। घर पर ताला लगा हुआ है। कुछ महीने पहले तक यहां अफजल का छोटा भाई हिलाल रहता था। अफजल के मां-बाप के चार बेटे थे। एक गांव वाले के मुताबिक, 'पिछले साल नवंबर में कसाब को फांसी होने के बाद अफजल का भाई काफी डरा हुआ था और उसने अपनी पत्नी को बताया था कि अगला नंबर अफजल का हो सकता है।' गांव वालों के मुताबिक हिलाल और उसकी पत्नी ने बहुत जल्दबाजी में घर छोड़ा था।
 2001 में अफजल की गिरफ्तारी के बाद ही उसकी पत्नी तबस्सुम अपने माता-पिता के घर बारामुला के आजाद गंज चली गई। अफजल के गांव के रहने वाले मुहम्मद यूसुफ ने बताया, 'तबस्सुम कभी-कभी यहां आती हैं।' पिछले साल सितंबर में अफजल की मां आयशा बेगम की पेट की बीमारी के चलते मौत हो गई थी जबकि अफजल के पिता हबीबुल्ला गुरु की 35 साल पहले सिरॉसिस के चलते मौत हुई थी। अफजल के गांव के पड़ोसी मुहम्मद सुल्तान ने उसके पिता हबीबुल्ला के बारे में बताया, '70 के दशक में जब गांव के ज्यादातर लोगों के लिए दो जून की रोटी मुश्किल थी, तब उनके पास एंबेसडर कार थी।' एक अन्य पड़ोसी अब्दुल अहद ने बताया, 'जब लोगों ने टीवी देखी नहीं थी, तब उन्होंने अपने बच्चों के लिए टीवी खरीदी थी। पूरा गांव रविवार को उनके घर पर इकट्ठा होकर फिल्म देखता था।' हबीबुल्ला ट्रांसपोर्ट और लकड़ी का कारोबार करते थे। लेकिन बहुत कम उम्र में उनकी मौत हो गई थी। अफजल का बड़ा भाई एजाज कई साल पहले ही अपने परिवार के साथ गांव छोड़कर चला गया था। लेकिन जब अफजल के पिता की मौत हुई थी तब परिवार के खर्च का जिम्मा अफजल के बड़े भाई एजाज पर आ गया। एजाज ने वेटेरिनरी डिपार्टमेंट में नौकरी कर ली और साथ ही लकड़ी का भी कारोबार करता रहा। अफजल के चचेरे भाई फारुख गुरु ने बताया, 'एजाज ने मेहनत कर यह सुनिश्चित किया कि अफजल की पढ़ाई पर असर न पड़े।'
अफजल के परिवार पर उस वक्त मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था जब अफजल के सबसे छोटे भाई रियाज की मौत हो गई थी। रियाज दिल्ली में ही रहता था, जहां वह कश्मीर से जुड़ी चीजों का कारोबार करता था। इन घटनाओं ने अफजल की मां आयशा की सेहत पर बुरा असर डाला। अफजल की मां बीमार रहने लगी थीं। शीर जागीर गांव की एक महिला के मुताबिक, 'उस दौर में अफजल नदी से पानी लाता था और खाना पकाना, कपड़े धोना और घर की सफाई जैसे काम करता था। चाहे गर्मी हो या ठंड अफजल हमेशा अपनी मां की मदद करता था।' लेकिन उसने तब भी अपनी पढ़ाई से समझौता नहीं किया। गांव के बच्चों के साथ वह एक नाव से डोबगढ़ गवर्नमेंट हाई स्कूल में पढ़ने जाता था। अफजल के साथ पढ़ चुके मौलवी बशीर अहमद ने बताया, 'वह खेल, थिएटर और सांस्कृतिक गतिविधियों में बहुत तेज था।' अफजल के स्कूली दिनों में उसके सीनियर रहे मुबाशिर मराजी स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित होने वाली परेड में अफजल अक्सर कमांडर बनता था। मराजी के मुताबिक पढ़ाई के साथ-साथ अन्य चीजों में अफजल की दिलचस्पी और उसका मजाकिया अंदाज अध्यापकों को बहुत भाता था। उस दौर में कश्मीरी पंडितों का घाटी की शिक्षा और प्रशासन में बहुत दखल था। अफजल गुरु पर प्राणनाथ सूरी, रतन लाल, त्रिलोकीनाथ रैना और श्याम सुंदर गरतू जैसे अध्यापकों का गहरा असर पड़ा था। मौलवी बशीर अहमद के मुताबिक, 'हमारे अध्यापकों ने कभी भी छात्रों में भेदभाव नहीं किया। अफजल उनका पसंदीदा छात्र था।'
 अफजल के पड़ोसी, दोस्त और रिश्तेदार इस बात पर भरोसा ही नहीं कर पाते कि संसद हमले में उसका हाथ था। उनकी नजरों में अफजल को डॉक्टर बनना था और अगर ऐसा होता तो शीर जागीर को उसके फख्र होता। जब मेडिकल कॉलेज में अफजल का दाखिला हुआ था, तो पूरे गांव ने जश्न मनाया था। अफजल के पिता की जब मौत हुई, तो उसकी उम्र महज 10 साल थी और कश्मीर घाटी में अमन चैन था। लेकिन कुछ साल बाद कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने कदम रखे और शीर जागीर समेत घाटी के तमाम गांव आतंकवाद के घेरे में आ गए। युवाओं ने बंदूकें उठा लीं और घाटी लहूलुहान हो गई। शीर जागीर समेत सोपोर और उसके आसपास के इलाके आतंकवादियों के गढ़ बन गए। इन इलाकों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और सूडान से आतंकवादी आने-जाने लगे। लेकिन जल्द ही इसी दौरान अफजल के दिमाग पर आतंकवाद का गहरा असर पड़ा। 2006 में भेजी गई दया याचिका में अफजल ने लिखा था, 'घाटी में हजारों युवाओं पर उमर मुख्तार की प्रतिबंधित फिल्म लायन ऑफ द डेजर्ट का बहुत असर पड़ा था। इसमें एक टीचर की कहानी दिखाई गई थी जो अपने लोगों की आजादी के लिए लड़ता है और आखिर में उसे फांसी दे दी जाती है।'
आजादी के लिए भटका हुआ जूनुन अफजल पर भारी पड़ा। अफजल के एक रिश्तेदार ने बताया, 'मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई बीच में छोड़ने का गम उसे हमेशा सालता था। जब वह छोटा था तब उसके पिता उसे डॉक्टर नाम से पुकारते थे। हबीबुल्ला की इच्छा थी कि अफजल डॉक्टर बने और अफजल को यह बात पता थी।' झेलम वैली मेडिकल कॉलेज में अफजल के साथ पढ़ाई कर चुके एक डॉक्टर ने बताया, 'म्यूजिक से लगाव के चलते वह लड़कियों के बीच बहुत मशहूर था। वह अक्सर ग़ज़ल सुनाता था और लड़कियां उसे पसंद करती थीं।' उस दौर में झेलम मेडिकल कॉलेज में हॉस्टल नहीं था। तब कुछ छात्र बेमिना में एक प्राइवेट हॉस्टल में रहते थे। एक अन्य डॉक्टर ने अपना नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर बताया, 'बेमिना में मैं और अफजल साथ-साथ रहते थे। उसे कविताएं बहुत पसंद थीं। मिर्जा गालिब और अल्लामा इकबाल जैसे शायर उसके पसंदीदा थे। उसके कमरे में इकबाल का बहुत बड़ा पोस्टर लगा रहता था।' अफजल के साथ पढ़ाई कर चुके एक अन्य शख्स ने उसके के बारे में बताया, 'वह बहुत मेहनत से पढ़ाई करता था और औसत नंबर पाता था। एमबीबीएस के पहले साल अफजल सभी विषयों में पास हो गया था। उसके बाद किसी विवाद के चलते कॉलेज कुछ महीनों के लिए बंद हो गया। उसके बाद हम लोग पहले प्रोफेशनल इम्तिहान के लिए कॉलेज में इकट्ठा हुए। लेकिन अफजल नहीं आया। उसके बाद से हम लोगों ने अफजल को कभी नहीं देखा।'
मेडिकल की पढ़ाई छोड़ने के बाद अफजल जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का सदस्य बन गया। अफजल अपने ममेरे भाई डॉ. अब्दुल अहद गुरु से बहुत प्रभावित रहता था। वे मशहूर डॉक्टर थे। लेकिन 1994 में उनकी आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। अब्दुल अहद ने झेलम वैली मेडिकल कॉलेज में अफजल के दाखिले में बहुत मदद की थी। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से लौटने के बाद अफजल एमबीबीएस की अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया। इसके बाद वह दिल्ली चला गया जहां उसने कॉरेसपॉन्डेंस से दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में बीए किया। इसके बाद अफजल ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में एडमिशन के लिए हाथ-पांव मारे। इस दौरान आर्थिक तंगी के चलते उसने ट्यूशन भी पढ़ाया। अफजल दिल्ली में अपने चचेरे भाई शौकत गुरु के साथ रहता था। शौकत ने एक अफसां नवजोत नाम की एक सिख लड़की से शादी की थी, जिसने बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
दिल्ली में ग्रेजुएशन करने के बाद अफजल ने 1998 में तबस्सुम से शादी कर ली जो उसके मां की रिश्तेदार थी। अफजल ने श्रीनगर में सर्जिकल सामानों का कारोबार शुरू किया। उसी सिलसिले में अक्सर वह दिल्ली जाता था। 1999 में तबस्सुम ने बेटे को जन्म दिया था। अफजल ने उसे गालिब नाम दिया। अफजल के ससुर गुलाम ने बताया, 'सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन एक दिन पुलिस ने अफजल को श्रीनगर के पारिमपोरा से गिरफ्तार कर लिया। खबरों में बताया गया कि वह संसद पर हमले में शामिल था। सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा कि उसके खिलाफ सुबूत हैं। लेकिन फिर भी देश के लिए उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया।' अफजल गुरु के वकील एनडी पंचोली का मानना है कि उसके मुवक्किल के साथ न्याय नहीं हुआ। पंचोली के मुताबिक, 'अदालत मित्र ने अफजल के केस में पर्याप्त बहस नहीं की। उन्होंने गवाहों से जिरह नहीं की। अफजल उनकी जगह किसी और अदालत मित्र को रखवाना चाहता था। लेकिन अफजल की मांग अनसुनी कर दी गई।'
 अफजल के बड़े भाई एजाज का कहना है कि उनके परिवार ने इस मुद्दों को अल्लाह पर छोड़ दिया है। एजाज के मुताबिक, 'अफजल ने हमसे और तबस्सुम से कई बार दया की भीख न मांगने को कहा था।' अपनी दया याचिका में अफजल ने लिखा था, 'मैं ऐसे किसी काम के लिए माफी नहीं मांग सकता हूं जो मैंने किया ही नहीं है।' अफजल की पत्नी तबस्सुम आम तौर पर मीडिया से बात नहीं करती हैं। लेकिन अपने पति की फांसी से कुछ वक्त पहले सोपोर के गुरु नर्सिंग होम में नौकरी करने वाली तबस्सुम ने कहा था, 'मैंने अब सब कुछ अल्लाह पर छोड़ दिया है। अफजल किसी बात से नहीं डरते हैं। अल्लाह उनकी हिफाजत करेगा।' अस्पताल का स्टाफ तबस्सुम की बहुत इज्जत करता है और उसे 'प्यारी दीदी' नाम से पुकारा जाता है। तबस्सुम का काफी समय नर्सिंग होम में बीतता है। लेकिन उसका पूरा ध्यान बेटे गालिब पर लगा रहता है। गालिब आठवीं में पढ़ता है। जब 2006 में अफजल का परिवार तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से दया याचिका के संबंध में मुलाकात करने पहुंचा था, तब गालिब ने कलाम को बताया था कि वह डॉक्टर बनना चाहता है। लेकिन पिता को हुई जेल के चलते उसे उम्मीद कम है। अफजल के ससुर गुलाम ने बताया, 'अफजल चाहता था कि उसका बेटा गालिब पीएचडी करे। जब गालिब आखिरी बार अफजल से मिला था, तब अफजल ने अपने बेटे से कहा था कि वह खूब पढ़े और हमेशा अपनी मां का साथ दे।'

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