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27 जनवरी 2013

वेदसार स्तव : अद्भुत शिव मंत्रों के शुभ प्रभाव से बदल जाते हैं दिन

 

हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक सोमवार भगवान शिव की उपासना का विशेष दिन है। इस दिन शिव पूजा जल्द ही हर कामना पूरी करने वाली मानी गई है। इंसान की ऐसी ही चाहतों में एक है - धन लाभ। 
28 को सोमवार के माघ माह की शुरुआत का शुभ योग बना है। यह माह तीर्थराज प्रयाग में दान, स्नान व देव स्मरण के जरिए बड़ा ही पुँण्य देने वाला माना जाता है। खासतौर पर  प्रयाग में चल रहे कुम्भ स्नान के पुण्य योग में तो शिव पूजा मनचाहा फल देगी है। 
सोमवार को सुबह-शाम शिव की पूजा कर खास मंत्र स्तुति का स्मरण धन के साथ ही तमाम परेशानियों को झटपट दूर करने वाला माना गया है। 

यह मंत्र स्तुति भगवान शंकर के अवतार माने गए भगवान शंकराचार्य द्वारा रची गई है। इसलिए इसे साक्षात् शंकर द्वारा दिया गया सुख का मंत्र भी माना गया है। यह वेदसार स्तव के नाम से प्रसिद्ध है। जानिए आसान पूजा विधि के साथ मंत्र स्तुति - 

- सुबह शिवलिंग पर जल, दूध या पंचामृत स्नान के बाद, फूल, श्रीफल या नारियल अर्पित करें। 

- शाम को भगवान शिव की पंचोपचार पूजा में बिल्वपत्र, धतूरा, सफेद चंदन, केसर चंदन, आंकड़ा, अक्षत व मिठाई का भोग लगाकर अपनी कामनापूर्ति की प्रार्थना कर नीचे लिखी मंत्र स्तुति का पाठ करें और शिव की आरती कर प्रसाद ग्रहण करें -
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु- र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः।9।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।

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