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24 जनवरी 2013

'मुझे गुजरात में दफनाना, कब्र पर महुआ का पेड़ लगाना'

 

जयपुर.प्रसिद्ध लेखिका और वामपंथी रुझान वाली सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी ने कहा है कि वे सदा जीवित रहना चाहती हैं, लेकिन उनकी इच्छा है कि वे जब मरें तो उनकी देह का अग्नि से अंतिम संस्कार करने के बजाय उन्हें गुजरात की मिट्टी में दफनाया जाए। वे यह भी चाहती हैं कि उनकी कब्र पर महुआ का पेड़ लगाया जाए। 
 
यह मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात नहीं, गुजरात के आदिवासियों का इलाका तेजगढ़ है। उन्होंने यह भी कहा कि आज के आधुनिक समाजों को आधुनिकता का असली पाठ राजस्थान सहित विभिन्न प्रदेशों में रह रहे आदिवासियों से सीखना चाहिए, जिनमें जेंडर डिविजन नहीं है। 
 
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में उद्घाटन भाषण के बाद दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा: मैं नहीं चाहती कि मुझे जलाया जाए। मैं पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में दफनाया जाना पसंद करूंगी। अग्नि से अंतिम संस्कार और अस्थि प्रवाह में मेरा विश्वास नहीं है। लेकिन पुरुलिया में बहुत पुराने विश्वास के हिंदू रहते हैं। 
 
वे मुझे वहां दफनाए जाने की इजाजत नहीं देंगे। इसलिए मैंने फैसला लिया है कि मुझे गुजरात में दफनाया जाए। तेजगढ़ इलाके में जीएन देवॉय काम करते हैं और हमने यह इलाका देख भी लिया है। यह मेरे लिए सबसे अच्छा विकल्प है। मैं चाहती हूं, मेरे दफनाने के बाद मेरी कब्र पर महुआ का पौधा लगाएं और जो पेड़ बनकर लहलहाए। 
 
 
आदिवासी समाज सबसे आधुनिक 
 
महाश्वेता देवी ने कहा : आदिवासी समाजों के लोग शिक्षित भारतीयों से कहीं ज्यादा एडवांस हैं। इन लोगों से ही आज के आधुनिक लोगों को आधुनिकता सीखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार को चाहिए कि वह प्रदेश में आदिवासी और घुमंतू परिवारों सहित सबके लिए 100 प्रतिशत साक्षरता के लिए तत्काल आंदोलन चलाए। क्योंकि साक्षरता ही जिंदगी में आए दिन सामने आने वाले हर रण को जिताने वाला पहला और जरूरी हथियार है। 
 
आदिवासी इसलिए हैं आधुनिक
 
महाश्वेता देवी ने कहा :  आदिवासी आज भी पानी बचाते हैं। बेटे-बेटी में भेद नहीं करते। गर्भ में बेटी का पता लग भी जाए तो भ्रूण हत्या तो दूर, ऐसा करने की वे कल्पना भी नहीं कर सकते। जमीन पर स्त्री और पुरुष का समान अधिकार मानते हैं। ये दहेज नहीं लेते। न घूंघट है और न बुर्का। आधुनिक समाजों से भी आधुनिक इनके वस्त्र और आभूषण हैं। इनके जीवन में कला है, रंग हैं, पेड़ हैं। 
 
महिलाओं को है आजादी
 
उन्होंने कहा कि आदिवासी समाजों में महिलाओं को वह हर स्वतंत्रता हासिल है, जो आधुनिक समाजों में होनी चाहिए, लेकिन होती नहीं। एक मात्र आदिवासी ही हैं, जहां जेंडर डिविजन नहीं है। इन समाजों में स्त्रियों को वैधव्य का अभिशाप नहीं ढोना होता। 
 
यहां स्त्री पिता, पति या बेटों के वर्चस्व से पूर्ण मुक्ति का जीवन जीती है। उसे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने और कहीं भी घूमने-फिरने की सब आजादियां हासिल हैं। आदिवासी स्त्री चाहे तो पति को कभी भी छोड़कर अपने मनपसंद पुरुष से विवाह रचा सकती है।

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